जब हम टीके के विकास की बात करते हैं तो उसका मतलब दो चीजे होती है। पहला इनफ्रलुएंजा जैसी बीमारी के टीके जो पहले से मौजूद है फिर भी हर साल नया टीका तैयार करना पड़ता है। ऐसे टीके का विकास आसान होता है। क्योंकि उसके स्टेªन के बारे में पहले से मालूम है। नोवेल कोरोना वायरस दुनिया में नया वायरस है। दिसम्बर से पहले इसके बारे में किसी को मालूम नहीं था। इसलिए नए टीके का विकास इतना आसान काम नहीं है। शोध में कई चीजों का ध्यान रखना होता है। सबसे अहम बात यह है कि टीका वायरस को बढ़ने न दें। यह स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित होे। टीका तैयार होने के बाद पहले जानवरों पर परीक्षण करना पड़ता है कि वह प्रभावी है भी या नहीं। फिर इंसानों पर क्लीनिकल परीक्षण कर यह देखना होता है कि उसका इस्तेमाल कितना सुरक्षित है। यह भी अध्ययन किया जाता है कि वह बीमारी से बचाव में कितना कारगर है। टीके से कम से कम 70-80 फीसद तक बचाव देना ही उसे उपयोगी बनाता है। क्लीनिकल परीक्षण के दौरान बच्चे, गर्भवती महिलाओं व वयस्क लोगों पर उसके प्रभाव का अध्ययन होता है। बेसिक शोध व क्लीनिकल परीक्षण से गुजरने के बाद टीका तैयार होता है और उसके उत्पादन की प्रक्रिया शुरू होती है। एक ही दिन में करोड़ो खुराक टीका उत्पादन भी संभव नहीं होता है। इसलिए टीकाकरण के लिए हाई रिस्क समूह का चयन कर उत्पादन शुरू होता है। इसलिए कोरोना का टीका विकसित होने में भी साल से डेढ़ साल समय लगना निश्चित है। भारत में कोरोना के टीके के प्रयास के तहत मरीजों के सैंपल से कोरोना वायरस को आइसोलेट कर जरूरी संसाधन एकत्रित कर लिया गया है।
दवाओं से किसी मरीज को ठीक किया जा सकता है लेकिन टीका ही ऐसा विकल्प है जिससे बीमारी से बचाव संभव होता है। इसलिए राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के तहत सभी बच्चों को बीसीजी, हेपेटाइटिस बी, पोलियो, टिटनस, खसरा, डिप्थीरिया, डायरिया इत्यादि से बचाव के लिए टीके लगाए जाते हैं। इससे शिशु मृत्युदर कम हुई है। इससे शिशु मृत्युदर कम हुई है। कई जगहों पर खसरे का टीका लोग बच्चों को नहीं लगवा रहे थे तो उसका आउटब्रेक भी देखा गया। इसलिए यह जरूरी है कि टीकाकरण में सुस्ती नहीं हो। यह लोगों में गलत धारणा है कि टीका लगाने से उसका साइड इफेक्ट पड़ेगा। बहुत सुरक्षा मानकों का परीक्षण करने के बाद ही उसे बाजार में लाया जाता है। इसलिए टीके का फायदा बहुत है, नुकसान नहीं। पिछले कुछ सालों में इनफ्रलुएंजा (फ्रलू व स्वाइन फ्रलू) का संक्रमण हर साल होता है। इसका टीका हर साल सर्दी शुरू होने से पहले लगाने से फ्रलू से बचाव संभव है। खासतौर पर बुजुर्गों को यह टीकाक जरूर लगाना चाहिए। इसी तरह निमोकोकल का टीका भी जरूरी होता है। यह टीका दो तरह का आता है। इसका एक टीका पूरे जीवन में सिर्फ एक बार लगता है। जबकि दूसरा टीका पाँच साल बाद लगाना होता है। 65 साल की उम्र के बाद यह टीका लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। सर्वाइकल कैंसर से बचाव के लिए एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमा वायरस) का टीका भी उपलब्ध है। यदि 9 से 14 साल की सभी लड़कियों को यह टीका लगाया जाए तो हर साल करीब 50 हजार महिलाओं को जिंदगी बचाई जा सकती है। इसलिए यह जरूरी है कि उपलब्ध टीकों का सदुपयोग करें।
कोरोना इंसानों के अस्तित्व पर भले ही संकटा बना हो, लेकिन इंसान हमेशा से अपने अस्तित्व को लेकर बहुत सजग और सतर्क रहा है। मानव कल्याण या खुद के अस्तित्व को बरकरार रखने को जब-जब इसे जिस जिस चीज की जरूरत महसूस हुई, उसकी खोज की। दिनों, महीनों, और वर्षों भले ही लगे हों। लेकिन हमारें खोजी विदों का प्रयास रंग लाया है। और इंसानियत जिंदाबाद रही है। चीन से पैदा हुआ कोरोना वायरस महामारी बन चुका है। दुनियाभर में इस बीमारी को लेकर भय व्याप्त है। अमेरिका सहित कई देश और बड़ी दवा कंपनियाँ दवा और टीके की ईजाद में रात-दिन एक किए हैं। भारी खर्च और बड़ी मशक्कत के बाद भी रास्ता नहीं सूझ रहा है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसकी दवा बनाने में फिलहाल अभी महीनों का वक्त लगेगा जबकि टीका अगले साल ही तैयार हो पाएगा। पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक कहावत है, जिसमें कोई पूछता है कि सेठ, हल्दी क्या भाव है? जवाब मिलता है कि जैसा चोट में दर्द हो? किसी बीमारी के टीके की अहमियत अब दुनिया को पता चल रही है। वर्तमान में ऐसी तमाम बीमारियाँ हैं। जिनके टीके अथक मशक्कत के बाद तैयार हुए। दशकों से उनके इस्तेमाल से हम सुरक्षित रहे हैं। कई महामारियों का नामोनिशां इन्हीं के बूते मिटाया जा चुका है। फिर भी हम टीकाकरण के प्रति अनमयस्क रहते हैं। दलील देते हैं कि फलाने के जमाने में कौन सा टीका होता था। सब खाने-कमाने के धंधे हैं। जनाब, अगर आपकी भी यही सोच है तो इसे बदलिए। टीकाकरण के बूते ही आज शिशु और मृत्युदर में बहुत कमी पाई जा चुकी है। बच्चों के लिए टीकाकरण तो एक तरह से वरदान साबित हो रहा है। 1995 में इसी दिन पोलियो की पहली खुराक पिलाई गई थी। लिहाजा कोरोना से सबक लेते हुए आज ही अपने स्वजनों को उनके लिए जरूरी टीके जरूर दिलाएँ। ऐसे में आधुनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में टीके की अहमियत की पड़ताल आज सबके लिए बड़ा मुद्दा है। टीकाकरण तैयार करना आसान काम नहीं होता। बेसिक शोध, कई स्तरों पर क्लीनिकल परीक्षण के बाद यह तैयार होगा। फिर जरूरत के मुताबिक उत्पादन कर आमजन को उपलब्ध कराना भी कम चुनौतीपूर्ण नहीं होता। इसके बाद भी लोगों को जागरूक करना चुनौती है। ु