पृथ्वी को दें हरियाली

1970 में पर्यावरण आंदोलन के रूप में विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। अमेरिकी सीनेटर गेलॉर्ड नेल्सन की ओर से 1970 में शुरू की गई यह छोटी सी मुहिम आज एक विशाल आयोजन के रूप में बदल चुकी है, जिसे 95 से अधिक देश मनाते हैं। 

पहले पृथ्वी दिवस दो दिन 21 मार्च और 22 अप्रैल को मनाया जाता था। हालांकि दोनों दिनों के महत्व में थोड़ा फर्क था। 21 मार्च को मनाए जाने वाला विश्व पृथ्वी दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किया गया था। वहीं 22 अप्रैल का दिन आम आदमी द्वारा पर्यावरण हित में मनाया जाता था। अब यह एकही दिन 22 अप्रैल को ही मनाया जाता हैै। 

हर सुख-दुख में साथ निभाने वाले दोस्त से जुड़ा कोई विशेष दिन हो तो उसके लिए एक खास तोहफा देने की प्लानिंग तो जरूर करते होंगे आप। नवीन जैन बता रहे हैं कि ऐसे ही खास दिन अर्थडे (22 अप्रैल)पर अपनी प्यारी पृथ्वी को तोहफे में थोड़ी-सी हरियाली देकर बनाया जा सकता है इस दिन को और भी खास--- 

यही कोई करोड़ों साल पहले जन्म हुआ है इस पृथ्वी का। तब से लेकर अब तक इसमें ढेरों बदलाव हुए। नदी, पहाड़, जंगल सब हम इंसानों के लिए नेमत ही तो हैं। हालांकि ये बदलाव तो आज भी जारी है मगर अब सकारात्मक कम और नकारात्मक ज्यादा हो रहे हैं। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘पृथ्वी में इतनी सामर्थ्य है कि वह हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन कभी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती है। उनके इसी कथन का मर्म समझते हुए आज पृथ्वी को सहेजना बेहद जरूरी है। इसी उद्देश्य के चलते हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है ताकि हमारा जीवन सुरक्षित रह सके। यह समय है कि हम जल्द से जल्द हरियाली से दोस्ती पक्की कर लें। इसी पर आधारित है इस वर्ष की थीम प्रकृति में कुछ भी अकेले मौजूद नहीं है। क्योंकि सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। 

हरियाली से दोस्ती 

ऐसा नहीं है कि हम हरियाली के संपर्क में बिल्कुल नहीं रहते मगर हरियाली से नियमित घनिष्ठता बेहद जरूरी है। इससे हमारे मन में ताजगी तो आएगी ही, हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा और हम अपने वातावरण को हरा-भरा रऽने के लिए प्रेरित होंगे। अमेरिका में हुई रिसर्च के मुताबिक हरियाली हमारी कार्यक्षमता को बढ़ाती है इसलिए गमले में ही सही, घर और कार्यस्थल पर कुछ पौधे जरूर लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखा कि पौधे ऐसी जगह हों जहां आपकी नजर पड़ सके। 

रोजाना हो एक सैर 

स्कूल , ट्यूशन , टी-वी- देखने या स्मार्टफोन पर गेम खेलने के बीच खो  गया है ली हवा में तितलियों के पीछे दौड़ लगाता  बचपन। तो क्यों न आज से ही बच्चों को बगीचों की सैर करवाई जाए। हरे-भरे पेड़ों और रंग-बिरंगे फूलों के बीच खेलने से ये बच्चे प्रकृति के प्रति संवेदनशील बनते हैं। ताजी हवा जहाँ बच्चे के विकास में सहयोगी है वहीं पेड़-पौधों और मिट्टी में खेलने से उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। आजकल शारीरिक गतिविधियाँ कम करने के चलते छोटी उम्र में बच्चों को बड़ों की बीमारियाँ लग रही हैं। ऐसे में बच्चों को मैदान में खेले जा सकने वाले खेलों से रूबरू करवाना जरूरी है। इससे उनके मानसिक विकास में भी इजाफा होगा तथा समूह में खेलना उन्हें दोस्ती बढ़ाना सिखाएगा। किशोरावस्था में पहुँचते ही बच्चे पढ़ाई के बोझ तले दबने लगते हैं। ऐसे में उन्हें कुछ देर प्रकृति के संपर्क में रहने के लिए प्रेरित करें। पौधों में पानी डालने जैसा काम उन्हें सौंपा जा सकता है। प्रकृति का संपर्क युवा होते बच्चों में सकारात्मकता, नई आशा, उत्साह, जोश, और साहस का संचार करता है। 

जीवन की प्रेरणा 

आज से ही अपने व्यस्त शेडूल में से थोड़ा-सा वक्त निकालकर प्रकृति की सैर पर जाएं। इससे आप ज्यादा के सेहतमंद महसूस करेंगे। ताजी हवा, हल्की धूप, चारों तरफ छायी शांति और ढेर सारी हरियाली कई प्रकार से लाभ पहुँचाती है। वहीं इसके सकारात्मक प्रभावों का आनंद लें और ईश्वर की इस नेमत को हाथों से न जाने दें। एक उम्र के बाद शारीरिक रूप से कमजोर हो चले बुजुर्ग यदि अपना कुछ समय हरियाली में बिताने का संकल्प लें तो उन्हें पर्याप्त मात्र में विटामिन डी मिलेगा जो उन्हें इस उम्र में होने वाली तमाम नई परेशानियों से मुक्त रखेगा। ब्रिटेन की एक्सेटर यूनिवर्सिटी में हेल्थ से जुड़े में शोध के सह लेखक डॉ- मैथ्यू व्हाइट कहते हैं कि हरियाली वाली जगहों पर समय बिताने वाले बुजुर्गों में अवसाद तथा चिंता के लक्षण कम देखे जाते हैं। इसी तरह फ्रांस के शोधकर्ता मिग क्यो का कहना है कि प्रकृति में दर्द कम करने की अद्भुत क्षमता होती है जो बुजुर्गों के लिए जीवनदायिनी होती है। जापान में लोग पेड-पौधों के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए जंगलों में ‘फॉरेस्ट बाथिंग’ करते हैं। पेड़-पौधों के बीच मेडिटेशन करने की परंपरा को अमल में लाकर जापान के लोग अधिक खुश  और लंबी आयु जीने वाले हो गए हैं।