मनीषा भूषण असिस्टेंट प्रोफेसर
प्रकृति पर प्रभाव वर्तमान परिदृश्य में संपूर्ण विश्व पर एक निगाह डालें तो कोरोना वायरस के सम्मुख संपूर्ण मानवजाति निरीह प्रतीत होती है। वहीं मानव जिसने हर मुश्किल चुनौती को आसान बना दिया। जिस मानव ने पृथ्वी से आकाश तक अपनी विजय पताका फहरा रखी थी। आज विश्व के अति विकसित देशों में शुमार अमेरिका, इटली, स्पेन, चाइना, ब्रिटेन इत्यादि देश चीन जिनकी ताकत व सामर्थ्य का डंका पूरे विश्व में है। आज वही मानव एक सूक्ष्म वायरस के सामने परास्त दिखाई दे रहा है यह सभी अपने-अपने देश की अमूल्य संपत्ति मानव संपदा को बचाने में अपने को सूस कर रह है। इसस ता एक बात बिल्कुल स्पष्ट ह कि जिस विजय रथ पर सवार मानव अपने अंहकार, अपने मद में चूर प्रकृति को अपना गुलाम बनाने निकला था, जिस सत्य को वह अपने नए नए कीर्तिमान बनाने के दंभ में भल चका था कि वह तो केवल प्रकृति का एक हिस्सा मात्र है। आज उसी प्रकृति ने मानव के विजय रथ के पहियों की तीव्र गति को एक झटके में रोक दिया हैआज जिस मानव के लिए कुछ भी संभव नहीं था। आज वही एक वायरस की काट ढूँढने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। कहीं न कहीं या तो हम अपनी महत्त्वकांक्षा के आगे अपनी सफलताओं के बल पर अति आत्मविश्वास में प्रकति के सामर्थ्य उसकी शांत, शक्ति को समझकर भी नकारते रहे। वही प्रकृति जिसने मानव की सृजनात्मकता को एक मंच प्रदान कियासम्पूर्ण विश्व में कोविड-19 के कहर के बीच कोई एक चीज सुखद है, तो वह प्रकृति का स्वच्छता व निर्मलता के साथ मुस्कुराना। पूरा दिन पक्षियों का गुनगुनाना, चहचहाना, उनका यह कोलाहल नीरवता को चीरता हुआ अत्यंत सुखद प्रतीत होता है। पशु पक्षियों का पुनः निडरता के साथ धरती व आकाश में विचरण एक सुखद एहसास है। वर्षों बाद उड़ीसा के समुद्री तट पर लगभग आठ लाख कछओं द्वारा करोडों अंडे देकर घर वापसी की गई। अति व्यस्तमय समझे जाने वाले शहरों में चंडीगढ़, नोएडा में भी जंगली जानवरों को सड़कों पर घूमते देखा गया। इसी तरह राजाजी नेशनल पार्क से एक हाथी हरिद्वार में गंगा के तट तक पहुँच गया। जहाँ पर वह गंगा के निर्मल व स्वच्छ हो चुके जल का लुफ्त उठाता नजर आया। दिल्ली में यमुना पहले की तरह नहीं रही। उसे देखकर ही उसके साफ होने का एहसास हो जाता है। करोडों रुपये खर्च करके भी जिस गंगा को प्रदूषण से मुक्त नहीं किया जा सका था। वह लॉकडाउन ने करके दिखा दिया। कुछ स्थानों पर गंगा जी के निर्मल जल में वर्षों बाद डॉल्फिन को स्थानीय लोगों द्वारा अठखेलियाँ करते हुए देखना एक सुखद अनुभूति थीवहीं जालंधर के लोग वह सबह कभी नहीं भल सकते जिस दिन उन्हें अपने घर से 200 किलोमीटर दर स्थित बर्फ से लदी हिमालय की चोटियाँ साफ दिखाई पड़ रही थी। ऐसा नजारा कई दशकों बाद लोगों को देखने को मिला। वातावरण का असर मनुष्य पर भी दिखना शुरू हो गया है। श्वास संबंधी समस्याओं में काफी हद तक कमी देखने को मिली है। साफ वातावरण के कारण लोगों को अपने स्वास्थ्य में परिवर्तन साफ दिखाई देने लगा है। वातावरण अपने सामान्य तापमान से कम व इसमें शीतलता का एहसास पूरे दिन बना रहता है। वातावरण में यह सभी सकारात्मक परिवर्तन लॉक डाउन का ही परिणाम है इससे स्पष्ट है कि दशकों के अंतराल पर होने वाली यह प्राकृतिक आपदाएँ इस बात का संकेत हैं कि प्रकृति संतुलन एवं सामंजस्य बनाए रखने का कार्य स्वयं कर लेती है। आज कोरोना वायरस से पूरे विश्व की तबाही से जरूरी है कि एक सबक लेने की जरूरत है। उस आत्ममंथन की, जिससे हमें यह अहसास हो कि कहीं ना कहीं इस मानव विनाश की जिम्मेदारी भी मानव की है। जरूरी है यह समझने की कि विकास का महल प्रकृति के विनाश का कारण ना बने। जरूरत है यह समझने की कि प्रकृति और मानव का एक निश्चित संतुलन ही विकास की एक निश्चित दिशा निर्धारित करेगा। जरूरत है अपनी महत्वकांक्षा को संपूर्ण के विकास को एक दिशा देने की। जरूरत है आज ओशो के इस कथन को समझने की कि, 'आप पृथ्वी के मेहमान के मालिक नहीं।' अर्थात् हमारी जिम्मेदारी है प्रकृति के संरक्षण एवं संवर्धन की, ना की मालिक बनकर प्रकृति के दोहन एवं शोषण की।