मुकेश नादान
कोरोना संकमण के प्रसार के लिए मँह से निकली थक की छोटी बँदें छींक, खाँसने से ज्यादा घातक साबित हो सकती है। एक शोध में पता चला है कि सिर्फ बात करने से भी हवा में थूक की उतनी ही बँदें फैल सकती हैं, जिसकी खाँसने या छींकने से निकलती हैं। इसलिए संक्रमित व्यक्ति का बिना मास्क लगाए बात करना भी उतना ही घातक है, जितना खांसना या छींकना।अमेरिका के मेरीलैंड में स्थित नेशलन इंस्टीटयट ऑफ हेल्थ इन बेथेस्डा में डॉक्टर हावें विंस्टन के शोध से यह पता चला है कि; 1. बातचीत में मुँह से निकली बूंदें छोटी होती हैं और ज्यादा देर तक हवा में रहती हैं। 2. खसने, छींकने के दौरान मुँह से निकली बूंदें बड़ी होती हैं और जल्द ही जमीन पर गिर जाती हैं। 3. बोलने वाले की आवाज तेज होने पर मुँह से निकली थूक की बूंदों की मात्रा भी ज्यादा हो जाती है। 4. बिना मास्क के एक ही वाक्यांश के तीन बार दोहराव के दौरान तेज आवाज में 347 और धीमी आवाज में 227 के कण देखे गए। शोध के परिणाम 1. शोधकर्ताओं ने ग्रीन लेजर से तैयार एक लाइट शीट को बॉक्स के अंदर ऐसे लगाया ताकि थूक की बूंदों को हरी रोशनी में देखा जा सके। जुलाई-सितंबर 2020 2. एक व्यक्ति मँह बॉक्स में बने छेद से लगातार बोल रहा था तो उसके मुँह से निकलने वाला थूक लेजर की रोशनी में दिखाई दे रहा था। 3. जब प्रक्रिया को चेहरे पर मास्क पहनाकर दोबारा दोहराया गया तो शक कीट की गली में नजान तो थूक की एक बूंद हरी रोशनी में नजर नहीं आई। 4. विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्देशों के अनुसार स्वस्थ लोगों को मास्क पहनने की जरूरत नहीं है। सिर्फ बीमार या उनकी देखभाल करने वालों को ही मासक पहनना चाहिए। 5. अमेरिका ने सभी नागरिकों को बचाव के लिए मास्क पहनने को कहा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि बिना लक्षण वाले मरीजों से मास्क पहनकर ही बचा जा सकता है। मास्क का प्रयोग करने से संक्रमण का प्रसार कम किया जा सकता है। आयुष मंत्रालय की सलाह 1. दिनभर समय-समय पर गर्म पानी पीते रहें, पानी को हल्का गर्म कर पीएँ2. रोजाना कम से कम 30 मिनट तक योग करें, मंत्रालय ने इसके लिए योगा एट होम, स्टेहोम, स्टे सेफ जैसे हैशटेग भी दिए हैं, मंत्रालय ने योग और ध्यान की सलाह दी। 3. अपने आहार में हल्दी, जीरा, धनिया और लहसन का इस्तेमाल जरूर करें। 4. एक चम्मच या 10 ग्राम च्वयनप्रास का सेवन रोज सुबह करें, डायबिटीज के रोगी शगर फ्री च्वयनप्रास का सेवन करें5. दिन में एक या दो बार हर्बल चाय, काढ़ा पीएं। काढ़ा बनाने के लिए पानी में तुलसी, दालचीनी, काली मिर्च, सूखी अदरक, मनक्का मिलाकर अच्छी तरह धीमी आँच पर उबालें, अगर मीठा लेना हो तो स्वादानुसार गुड़ डालें या खट्टा लेना हो तो नींबू का रस मिला लें। 6. दिन में कम से कम एक या दो बार हल्दी वाला दूध लें, 150 मिली लीटर गर्म दूध में करीब आधा छोटी चम्मच हल्दी मिलाकर पीएँ। 7. नैजल एप्लीकेशन : तिल का तेल या नारियल का तेल या घी रोज सुबह और शाम नाक में लगाएँ। 8. एक बड़ी चम्मच तिल या नारियल का तेल लें, दो से तीन मिनट तक मुँह में घुमाने के बाद थूक दें। इसके बाद गुनगर्ने पानी ___ से कुल्ला करें। 9. गले में खरास या सूखा कफ होने पर पुदीने की कुछ पत्तियाँ और अजवाइन को पानी में गर्म कर स्टीम लें। संक्रमण से बचाएगा नींबू का प्रयोग नींबू का प्रयोग संक्रमण से बचाने में मददगार हो सकता है। नींबू में मिलने वाले दो रसायन या केवल संक्रमण से लड़ने में मददगार हैं बल्कि ये रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बेहतर करेंगे। रसोई में मिलने वाली कुछ चीजों का प्रयोग भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करेगा। दिन में गर्म पानी और रात को सोने से पहले नमक के गर्म पानी से गरारे करना भी लाभ पहुँचाएगा। " यह दावा है मेरठ कॉलेज में बॉटनी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ० अमित मलिक का है। डॉ० मलिक का रिसर्च एरिया मेडिसनल प्लांट है और वे वर्तमान में मेडिसनल एंड एरोमेटिक प्लांट एसोसिएशन ऑफ इंडिया के वाइस प्रेसीडेंट हैं। यह एसोसिशन रिसर्च (आईसीएआर) के निर्देशन में काम करती हैडॉ० मलिक के अनुसार तेजी से बदल रहे मौसम में संक्रमण का खतरा सर्वाधिक है। इस मौसम में संक्रमण की शुरुआत गले से __ होती है। डॉ० मलिक के मुताबिक यदि रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) अच्छी है तो कोई परेशानी नहीं आ सकती। ऐसे में __ छोटे-छोटे उपाय ना केवल संक्रमण को रोक सकते हैं बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ा सकते हैं। नींबू में फ्लेवोनॉयडस और कम्पफेराल दो प्रमुख रसायन मिलते हैं। इसमें फ्लेवोनॉयडस एंटी वायरल है जबकि कम्पफेराल एंटी बैक्टीरियल। ऐसे में एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच शहद डालकर दो से तीन बार पीना चाहिएइससे रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। इसी तरह अदरक, काली मिर्च, लौंग, इलायची को दो से तीन मिनट उबालकर उसे छानते हुए उसमें आधा चम्मच शहद मिलाकर दो से तीर बार पी सकते हैं। एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच हल्दी मिलाकर ली जा सकती है।
मोटापा है तो जान का जोखिम ज्यादा कोरोना वायरस उम्रदराज लोगों के लिए तो जानलेवा साबित हुआ है, वहीं महामारी के युवा मरीजों के लिए मोटापा सबसे बड़ा खतरा बनकर उभरा है। अमेरिका में आठ हजार मरीजों पर हुए दो अध्ययनों से यह चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। अध्ययन में पाया गया है. कि कैंसर फेफडे या हृदय रोग के मरीजों के मुकाबले मोटापे से ग्रस्त कोरोना के मरीजों की हालत तेजी से बिगड़ी है। वायरस के सामान्य मरीजों के मुकाबले मोटापे से ग्रस्त रोगियों को अस्पताल में भर्ती कराने की दोगुनी आवश्यकता पड़ी। मोटापे के शिकार ऐसे ज्यादातर मरीजों को वेंटीलेटर पर रखा गया। __ न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रासमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन ने __ पहले अध्ययन में 4103 बुजुर्ग मरीजों का अध्ययन किया, जिसमें 46 फीसदी मरीज 65 वर्ष से ज्यादा उम्र के मिले। दूसरे अध्ययन में लैंगन हेल्थ संस्थान ने 60 साल से कम उम्र के 3615 मरीजों की पड़ताल की। इसमें पाया गया है कि 30 फीसदी से ज्यादा बीएमआई वाले यानी मोटे मरीजों की हालत तेजी से बिगड़ी और उन्हें अस्पताल में भती कराने का साथ वेंटीलेटर का सहारा लेना पडासिंगल यूज प्लास्टिक बना नायक देशभर में फैले कोरोना संक्रमण के बीच सिंगल यूज प्लास्टिक डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों के लिए नायक बनकर उभरा है। डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के लिए व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) बनाने में सिंगल यूज प्लास्टिक का ही इस्तेमाल हो रहा है। डॉक्टरों, नौं, कंपाउंडरों और मेडिकल स्टाफ को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए पीपीई किट दी जा रही है। इसका इस्तेमाल पीपीई बनाने में किया जा रहा है। पीपीई के तहत डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों के लिए गॉगल्स, फेस शील्ड मास्क, _ दस्ताने, गाउन, हेड कवर और शू कवर का निर्माण किया जा रहा है। इस सभी का निर्माण पॉलीप्रोपाइलीन से ही हो रहा है। यह _ कोरोना मरीजों से संक्रमण रोकने में काफी कारगर हो रहा है। सिंगल यूज प्लास्टिक से बढ़ते प्रदूषण के कारण सरकार ने 2 अक्तबर, 2019 को इसका इस्तेमाल खत्म करने की अपील की थी। हालाँकि, बाद में लाखों लोगों को बेरोजगार होने की आशंका से इसमें ढील दी गई थी और धीरे-धीरे पूर्णयता प्रतिबंध करने की योजना थी। संक्रमित मरीज से भले ही सभी किनारा कर लें। पर डॉक्टर को इलाज करना ही होता है। सिंगल यूज प्लास्टिक से बना किट इस तरह बनाया जा रहा है कि उसके भीतर हवा भी ना जा सके।