पृथ्वी को दें हरियाली 


हर सुऽ-दुऽ में साथ निभाने वाले दोस्त से जुड़ा कोई विशेष दिन हो तो उसवेफ लिए एक ऽास तोहपफा देने की प्लानिंग तो जरूर करते होंगे आप। नवीन जैन बता रहे हैं कि ऐसे ही ऽास दिन अर्थडे ;22 अप्रैलद्धपर अपनी प्यारी पृथ्वी को तोहपफे में थोड़ी-सी हरियाली देकर बनाया जा सकता है इस दिन को और भी ऽास... 
यही कोई करोड़ों साल पहले जन्म हुआ है इस पृथ्वी का। तब से लेकर अब तक इसमें ढेरों बदलाव हुए। नदी, पहाड़, जंगल सब हम इंसानों वेफ लिए नेमत ही तो हैं। हालांकि ये बदलाव तो आज भी जारी है मगर अब सकारात्मक कम और नकारात्मक ज्यादा हो रहे हैं। महात्मा गांधी ने एक बार कहा था कि ‘पृथ्वी में इतनी सामथ्र्य है कि वह हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है लेकिन कभी मनुष्य वेफ लालच को पूरा नहीं कर सकती है। उनवेफ इसी कथन का मर्म समझते हुए आज पृथ्वी को सहेजना बेहद जरूरी है। इसी उद्देश्य वेफ चलते हर वर्ष 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाया जाता है ताकि हमारा जीवन सुरक्षित रह सवेफ। यह समय है कि हम जल्द से जल्द हरियाली से दोस्ती पक्की कर लें। इसी पर आधारित है इस वर्ष की थीम प्रकृति में वुफछ भी अवेफले मौजूद नहीं है। क्योंकि सब एक दूसरे पर निर्भर हैं। 
हो जाए हरियाली से दोस्ती 
ऐसा नहीं है कि हम हरियाली वेफ संपर्क में बिल्वुफल नहीं रहते मगर हरियाली से नियमित घनिष्ठता बेहद जरूरी है। इससे हमारे मन में ताजगी तो आएगी ही, हमारे स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा और हम अपने वातावरण को हरा-भरा रऽने वेफ लिए प्रेरित होंगे। अमेरिका में हुई रिसर्च वेफ मुताबिक हरियाली हमारी कार्यक्षमता को बढ़ाती है इसलिए गमले में ही सही, घर और कार्यस्थल पर वुफछ पौधे जरूर लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रऽें कि पौधे ऐसी जगह हों जहां आपकी नजर पड़ सवेफ। 
रोजाना हो एक सैर 
स्कूल, टड्ढूशन, टी.वी. देऽने या स्मार्टपफोन पर गेम ऽेलने वेफ बीच ऽो गया है ऽुली हवा में तितलियों वेफ पीछे दौड़ लगाता श बचपन। तो क्यों न आज से ही बच्चों को बगीचों की सैर करवाई जाए। हरे-भरे पेड़ों और रंग-बिरंगे पूफलों वेफ बीच ऽेलने से ने बच्चे प्रकृति वेफ प्रति संवेदनशील बनते हैं। ताजी हवा जहां बच्चे वेफ विकास में सहयोगी है वहीं पेड़-पौधों और मिट्टी में ऽेलने से उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। आजकल शारीरिक गतिविधियाँ कम करने वेफ चलते छोटी उम्र में बच्चों को बड़ों की बीमारियाँ लग रही हैं। ऐसे में बच्चों को मैदान में ऽेले जा सकने वाले ऽेलों से रूबरू करवाना जरूरी है। इससे उनवेफ मानसिक विकास में भी इजापफा होगा तथा समूह में ऽेलना उन्हें दोस्ती बढ़ाना सिऽाएगा। किशोरावस्था में पहुँचते ही बच्चे पढ़ाई वेफ बोझ तले दबने लगते हैं। ऐसे में उन्हें वुफछ देर प्रकृति वेफ संपर्क में रहने वेफ लिए प्रेरित करें। पौधों में पानी डालने जैसा काम उन्हें सौंपा जा सकता है। प्रकृति का संपर्क युवा होते बच्चों में सकारात्मकता, नई आशा, उत्साह, जोश, और साहस का संचार करता है। 
मिलती है जीवन की प्रेरणा 
आज से ही अपने व्यस्त शेडड्ढूल में से थोड़ा-सा वक्त निकालकर प्रकृति की सैर पर जाएं। इससे आप ज्यादा वेफ सेहतमंद महसूस करेंगे। ताजी हवा, हल्की धूप, चारों तरपफ पाता शांति और ढेर सारी हरियाली कई प्रकार से लाभ पहुँचाती है। वाई इसवेफ सकारात्मक प्रभावों का आनंद लें और ईश्वर की इस नेमत को हाथों से न जाने दें। एक उम्र वेफ बाद शारीरिक रूप से कमजोर हो चले बुजुर्ग यदि अपना वुफछ समय हरियाली में बिताने का संकल्प लें तो उन्हें पर्याप्त मात्रा में विटामिन डी मिलेगा जो उन्हें इस उम्र में होने वाली तमाम नई परेशानियों से च्चों मुक्त रऽेगा। ब्रिटेन की एक्सेटर यूनिवर्सिटी में हेल्थ से जुड़े में शोध वेफ सहलेऽक डाॅ. मैथ्यू व्हाइट कहते हैं कि हरियाली वाली जगहों पर समय बिताने वाले बुजुर्गों में अवसाद तथा चिंता वेफ लक्षण कम देऽे जाते हैं। इसी तरह Úांस वेफ शोधकर्ता मिग क्यो का कहना है कि प्रकृति में दर्द कम करने की अद्भुत क्षमता होती है जो बुजुर्गों वेफ लिए जीवनदायिनी होती है। जापान में लोग पेड-पौधों वेफ प्रति आकर्षण पैदा करने वेफ लिए जंगलों में श्पफाॅरेस्ट बाथिंगश् करते हैं। पेड़-पौधों वेफ बीच मेडिटेशन करने की परंपरा को अमल में लाकर जापान वेफ लोग अधिक ऽुश और लंबी आयु जीने वाले हो गए हैं। 
1970 में पर्यावरण आंदोलन वेफ रूप में विश्व पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी। अमेरिकी सीनेटर गेलाॅर्ड नेल्सन की ओर से 1970 में शुरू की गई यह छोटी सी मुहिम आज एक विशाल आयोजन वेफ रूप में बदल चुकी है, जिसे 95 से अधिक देश मनाते हैं। 
पहले पृथ्वी दिवस दो दिन 21 मार्च और 22 अप्रैल को मनाया जाता था। हालांकि दोनों दिनों वेफ महत्व में थोड़ा पफर्क था। 21 मार्च को मनाए जाने वाला विश्व पृथ्वी दिवस संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित किया गया था। वहीं 22 अप्रैल का दिन आम आदमी द्वारा पर्यावरण हित में मनाया जाता था। अब यह एकही दिन 22 अप्रैल को ही मनाया जाता हैै।
मिट्टी की नेमत 
आधुनिक जीवन शैली में भले ही ठंडे पानी वेफ लिए जमकर हो रहा है Úिज का प्रयोग मगर स्वास्थ्य वेफ लिहाज से मटवेफ वेफ सोंधी महक वाले पानी का नहीं है कोई विकल्प। रेणु जैन बता रही हैं कि यह सिपर्फ हमारी ही नहीं बल्कि प्रकृति की सेहत वेफ लिए भी है पफायदेमंद... 
आज हमें Úिज का पानी पीना बड़ा माॅडर्न लगता है लेकिन हम याद नहीं रऽते कि मिट्टी वेफ मटवेफ में रऽे पानी में कितने गुण हैं और यह अच्छे स्वास्थ्य वेफ लिए सुरक्षा कवच है। दरअसल, मिट्टी में बुनियादी रूप से ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जो स्वास्थ्य वेफ रक्षक होते हैं। यह सिपर्फ पानी सुरक्षित रऽने का पात्रा नहीं है बल्कि इसवेफ इस्तेमाल वेफ साथ ही हम बढ़ जाते हैं एक कदम प्रकृति की ओर। 
गुणों का ऽजाना 
मिट्टी वेफ मटवेफ की दीवारों में असंख्य सूक्ष्म छिद्र होते हैं। इन लिद्रों से पानी रिसता रहता है, जिस कारण मटवेफ की सतह पर हमेशा गीलापन रहता है। मटवेफ में पानी रऽने पर इसका वाष्पीकरण होता है, जिससे पानी वेफ कण गर्मी वेफ रूप में ऊर्जा प्राप्त करते हैं और पिफर गैस में बदल जाते हैं। पिफर ये कण हवा वेफ साथ मिश्रित हो जाते हैं तथा मटवेफ में पफैल जाते हैं, जिससे मटवेफ का पानी ठंडा हो जाता है। मटवेफ से आपको वेफवल पीने वेफ लिए ठंडा पानी ही नहीं मिलता, बल्कि मिट्टी वेफ गुण भी मिल जाते हैं। मिट्टी वेफ बर्तनों में जलवायु वेफ अनुसार पानी को ठंडा करने की अदभुत क्षमता होती है। यह ऐसी विशेष गुणवत्ता है जो किसी भी धातु वेफ पात्रा में नहीं होती। पीढ़ियों से भारतीय घरों में पानी रऽने वेफ लिए मिट्टी वेफ बर्तन वानी मटकों का इस्तेमाल किया जाता है। मिट्टी में अनेक प्रकार वेफ क्षार, विटामिन, ऽनिज, धातु, रसायन, रत्न तथा रसों की मौजूदगी होती है। विशेषज्ञ भी मिट्टी में पाई जाने वाली रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्वीकारते हैं, जो मटवेफ से पानी में आ जाती है। यही कारण है कि मटवेफ में रऽा पानी हमें निरोगी रऽने में । मदद करता है। इसवेफ अलावा मटवेफ को रंगने में इस्तेमाल किया जाने वाला गेरू शरीर को शीतलता देता है। कहा जाता है कि मिट्टी की चुंबकीय ताकत शरीर को चुस्ती पुफर्ती तथा ताकत देती है। शरीर को उचित पीएच संतुलन प्रदान करवेफ एसिडिटी तथा पेटदर्द में राहत पहुँचाने का काम भी मटवेफ का पानी करता है। आमतौर पर गर्मियों में लोग Úिज का पानी पीते हैं लेकिन पानी ज्यादा ठंडा होने वेफ कारण यह गले की कोशिकाओं पर बुरा प्रभाव डालता है जबकि मटवेफ में रऽा पानी सही तापमान पर रहता है, न बहुत अधिक ठंडा और न गर्म । मटवेफ का पानी हमें हीट स्टोक से भी बचाता है। 
हानिकारक रसायनों से बचाव 
जीवन वेफ सभी क्षेत्रों में पर्यावरण अनुकूल विकल्पों का उपयोग करना एक अच्छी पहल है। कई लोग प्लास्टिक की बोतलों में पानी रऽते हैं, जिससे वे कई हानिकारक रसायन की गिरफ्रत में आ जाते हैं। वहीं आज लगभग हर घर में मौजूद रेÚिजरेटर ऽतरे को साक्षात निमंत्राण देने वाला उपकरण है। रेÚिजरेटर से उत्सर्जित क्लोरो फ्रलोरो कार्बन ;सीएपफसीद्ध ओजोन परत को सबसे । ज्यादा नुकसान पहुँचाती है जबकि मिट्टी वेफ बर्तन। पूरी तरह से पर्यावरण वेफ अनुकूल होते हैं। में लंबे समय तक उपयोग होने वेफ कारण वेफ मिट्टी वेफ मटवेफ प्लास्टिक बोतलों की अपेक्षा कापफी सस्ते साबित न होते हैं। 
हाथों का अनूठा हुनर 
मटवेफ की सहोदर सुराही तो अपनी कलात्मक डिजाइनों वेफ लिए अर्से से मशहूर थी ही, अब मिट्टी वेफ मटकों में भी कापफी कलात्मकता दिऽाई देने लगी है। जयपुर वेफ कारीगरों ने अपने हुनर से भग मटकों को लंबा और अंडाकार रूप दिया त्राण है। यहां नल लगे मटकों में रंगीन पेंटिंग भी दिऽाई देती है।