पशु और पक्षियों वेफ बारे में हमारे अभी तक वेफ अनुभव यह हैं कि वे दो प्रकार वेफ होते हैं। एक वे, जो हमारी तरह दिन भर सव्रिफय रहते हैं और रात में सो जाते हैं। और दूसरे वे, जो अपनी दिनचर्या रात में चलाते हैं और दिन में आराम करते हैं। उल्लू वेफ बारे में तो यह धारणा इतनी पुख्ता है कि जो रात में जागता है, उसे उल्लू कह दिया जाता है। हालाँकि सच यह भी है कि सभी पशु-पक्षियों को हम इस वर्गीकरण में पूरी तरह पिफट नहीं कर सकते। मसलन, हमारे आस-पास वेफ जीवों में चूहे, बिल्ली और वुफत्ते बगैरह ऐसे हैं, जिनकी सव्रिफयता और आराम में इस बात से ज्यादा पफर्वफ नहीं पड़ता कि दिन है या रात। वे आपको किसी भी समय घूमते-टहलते या सोते हुए दिख सकते हैं। किस जानवर की सोने या जागने की आदत वैफसी है, यह मामला आमतौर पर उसवेफ विकास व्रफम से जुड़ा हुआ होता है। यानी यह बहुत वुफछ इस पर निर्भर करता है कि वह किन स्थितियों में और किस क्षमताओं वेफ साथ विकसित हुआ है। यह मामला कापफी वुफछ इंद्रियों की क्षमताओं और भोजन चव्रफ से भी जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिक मानते रहे हैं कि करीब साढ़े छह करोड़ साल पहले विकास व्रफम में मिली यह आदत अब स्थापित हो चुकी है। लेकिन पशुओं वेफ व्यवहार का अध्ययन करने वाले कई सारे वैज्ञानिकों की यह राय अब बदलने लगी है। उन्होंने अपने अध्ययन में पाया है कि बहुत से जानवरों ने अपने सोने या जागने की आदतें पिछले दिनों बदल दी हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि इसका कारण वुफछ और नहीं, बल्कि इंसान है।
वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन इलाकों में मानव सव्रिफयता कापफी ज्यादा होती है, वहाँ पशुओं खासकर जंगली पशुओं ने अब दिन में सोने और रात में सव्रिफय होने की आदत अपना ली है। इसमें सबसे अच्छा अध्ययन वैफलिपफोर्निया क्षेत्रा में पाए जाने वाले जंगली वुफत्तों कोयोट का है। भेड़िए जैसी शक्ल वाले इन कोयोट को आमतौर पर दिन में शिकार करने वाला जीव माना जाता था, रात वेफ समय जंगलों में उनकी गतिविधियाँ कापफी कम हो जाया करती थीं। लेकिन अब इन जंगलों में हालात बदल गए हैं। लोग अब यहाँ भारी संख्या में पिकनिक, हाइकिंग और साइक्लिंग वेफ लिए आने लगे हैं। ऐसे मे कोयोट वेफ लिए सव्रिफय होकर अपना शिकार करना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए इंसान से दूर रहने वाले इन जीवों ने अब अपनी आदत ही बदल दी है। अब वे दिन भर घने जंगलों में सोते हैं, और रात में शिकार वेफ लिए निकलते हैं।
वैफलिपफोर्निया में ही नहीं, यह सभी जगहों पर हो रहा है। बाघ आमतौर पर दिन में शिकार करना पसंद करते है। लेकिन यह पाया गया है कि मानव बस्तियों वेफ आस-पास पशुओं वेफ शिकार वेफ लिए वह आमतौर पर रात का समय ही चुनता है। उसने यह सीख लिया है कि अगर दिन वेफ समय वह यहाँ आया, तो गाँव वाले उसकी जान वेफ पीछे ही पड़ जायेंगे। यूनिवर्सिटी आॅपफ वैफलिपफोर्निया, बर्वफले की पर्यावरण शास्त्राी वेफटलिन गेनर इस पर विस्तार से अध्ययन कर रही हैं, और वह इस नतीजे पर पहुँची हैं कि अपने आपको हालात वेफ हिसाब से ढालते हुए ये पशु अब विकास व्रफम को आगे बढ़ा रहे हैं। जो बदलाव हो रहा है, उसे साधारण भाषा में कहें, तो अब बहुत से जानवर उल्लू बनते जा रहे हैं, या शायद मानव को उल्लू बना रहे हैं।
नया दिन, नई रात