हमें जल वायु और ध्वनि प्रदूषण ही नहीं है बल्कि एक और प्रदूषण भी है, जो मानव जीवन वेफ लिए ध्ीमा जहर साबित हो रहा है। दूरसंचार, टेलीविजन ट्राँसमिशन, मोबाइल नेटवर्वफ आदि से इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन पैफलता है। आँखों से नजर न आने वाला ये प्रदूषण मानव स्वास्थ्य वेफ लिए सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है।
चिंताजनक बात यह भी कि अपने देश में आज तक इसकी मानक सीमा तय करने की दिशा में कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया है, जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और प्रफाँस ने रेडिएशन पर न सिर्पफ शोध् किए हैं, बल्कि मानक सीमा भी तय कर दी है।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन वेफ संबंध्ति वरिष्ठ वैज्ञानिक वी.पी. शांडल्स बताते हैं रेडियो, प्रफींक्वेंसी ;आर एपफद्ध पैफलाने वाले मोबाइल पफोन, पफोन टाॅवर, दूरसंचार, टेलीविजन ट्राँसमिशन, एपफ.एम. रेडियो स्टेशन से भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन पैफलता है। यह ध्ीमा जहर है। मोबाइल दूरसंचार कम्पनियों की आई बाढ़ की वजह से घनी आबादी वेफ बीच रेडियो प्रफींक्वेंसी युक्त उच्च शक्ति वेफ ट्राँसमीटर वाले ऐसे टावर घनी आबादी वेफ बीच इसी कारण से नहीं लगाए जाते थे। उन्हें शहर वेफ बाहरी छोर पर स्थापित किया जाता था। हालांकि मोबाइल पफोन वेफ बढ़ते चलन और कम्पनियों की बाढ़ ने सभी नियम ताक पर रख दिए हैं। रेडियो प्रफीक्वेंसी वाले उच्च शक्ति वेफ ट्राँसमीटरों से जैवीय खतरे की पहचान चालीस वेफ दशक में ही हो गई थी। शीत यु( वेफ दौरान सोवियत संघ ने मास्कों में अमेरिकी दूतावास पर इसे हथियार वेफ रूप में भी इस्तेमाल किया था। दूतावास वेफ आस-पास उच्च शक्ति का माइव्रफोवेव रेडिएशन पैफलाया था इसवेफ बाद ही मेडिकल व रेडियोलाॅजिकल वैज्ञानिकों को इसवेफ जरिए मानव स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का पता चला था।
इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन मानव शरीर पर बारीक गैर तापीय प्रभाव डालता है। इसवेफ प्रभाव से कई समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जिन्हें माइव्रफोवेव सिन्ड्रोम कहा जाता है। इनमें भूख न लगना, बेचैनी, बेहोशी, थकावट, एकाग्रता का अभाव, सिरदर्द आदि वेफ लक्षण मुख्य रूप से दिखाई देते हैं। रेडिएशन वाले क्षेत्रा में आए एक ट्राँसमिशन वेफ चलते वैंफसर भी हो सकता है। अनिद्रा, रक्तचाप में गिरावट या वृ(ि और मेल्टोनिन में कमी की समस्या भी होती है। वृ(, कमजोर लोगो, गर्भवती महिलाओ और गर्भस्थ शिशुओं पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। विकास वेफ चरण से गुजर रहे बच्चे की स्नायु प्रणाली और मस्तिष्क तरंगे इससे प्रभावित होती है। इस तरह बच्चे की कोशिकाओं में बढ़ी हुई मिंटोटिक गतिविध् िउन्हें आनुवंशिक क्षति वेफ प्रति संवेदनशील बनाती है। इस तरह शिशु वेफ शरीर में विकार आ सकता है। पेस मेकर वाले मरीजों पर असर, जानकार बताते हैं कि आरएपफ रेडिएशन का उन मरीजों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ये रेडिएशन पेस मेकर की पल्स रोक सकते हैं या बाहर से नियंत्रित पल्स उत्पन्न कर सकते हैं। वी.पी. शाडल्यास वेफ अनुसार अमरिका, ब्रिटेन, प्रफाँस और न्यूजीलैंड में हुए शोधें में इलेक्ट्रोमेग्नेटिक रेडिएशन को ध्ीमा जहर बताते हुए प्रदूषकों की श्रेणी में रखा गया है। वहाँ इसकी मानक सीमा भी तय है। वहाँ इसकी मानक सीमा भी तय है। हालांकि भारत में इसकी सीमा निर्धरित नहीं की गई है। संचार प्रौद्योगिकी की प्रगति आध्ुनिक समाज की अवश्यकता है, लेकिन रेडिएशन में कमी लाना भी जरूरी है
टावर की तरंगों से मानसिक रोगों का खतरा
लोगों मे मोबाइल टावर लगवाने के लिए तो होड़ लगी हैं, लेकिन इससे होने वाले दुष्प्रभावों पर किसी का ध्यान नहीं है। जो तथ्य निकलकर सामने आ रहे हैं, उनवेफ मुताबिक टावर वेफ नजदीक रहने वाले लोगों को इससे निकलने वाली खतरनाक तरंगों से मानसिक रोगों वेफ साथ ब्रेन ट्यूमर तक की गंभीर बीमारी से जूझना पड़ सकता है।
शहरों में मोबाइलधरकों की बात करें तो उनकी संख्या लाखों वेफ करीब है।
वैज्ञानिक तथ्यों वेफ मुताबिक आबादी में लगे टावर से निकलने वाली विकिरण तरंगों से लोग भयंकर मानसिक बीमारी का शिकार हो सकते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो टावर से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक्स तरंगे निकलती रहती है। जिससे टावर वेफ आसपास रहने वाले लोगों की ब्रेन ट्यूमर जैसी खतरनाक बीमारी वेफ अलावा मानसिक रोग होने की प्रबल आंशका रहती है। शहर व देहात क्षेत्रों में ज्यादातर टावर आबादी वाले स्थानेां पर लगाए गए हैं। लेकिन इससे निकलने वाली रेडिएशन तरंगो को दुष्प्रभाव रोकने वेफ लिए कोई उपाय नहीं किए गए हैं। इस संबंध् में विशेषज्ञ बताते हैं कि टावर से निकलने वाली तरंगे तत्काल तो लोगों पर असर नहीं डालती, लेकिन ध्ीरे-ध्ीरे ये अपनी चपेट में ले लेती है। ज्यादा बच्चे, बूढ़े व महिलाएँ प्रभावित होती है।
मुनापेफ का सौदा
घर हे या शहर की आबादी वेफ बीच किसी मकान की छत, मोबाइल टावर लगवाने वेफ लिए लोगों में मारामारी है। हो भी क्यों न, मोबाइल कम्पनियाँ प्रतिमाह हजारों रुपया महीना किराया देने वेफ साथ ही एक मोबाइल कनेक्शन व एक व्यक्ति को देखभाल वेफ लिए नौकरी देती है। इसवेफ लिए अब सौदेबाजी तक होने लगी है। कम्पनी वेफ अध्किारियों वेफ साथ मिलकर अब क्षेत्रों में द्रलाल टाइप लोग भी सव्रिफय हो गए हैं। वे मोबाइल टावर लगवाने वेफ लिए पचास हजर से एक लाख रुपये वसूल रहे हैं।
नियमों की अनदेखी
1. आबादी से दूर लगने चाहिए टावर।
2. रेडिएशन से ज्यादा नुकसान रोकने वेफ लिए बाउंड्री भी जरूरी
3. स्वूफल, अस्पताल व वृ( आश्रम वेफ करीब टावर न लगाए जाएँ।
4. रेडिएशन हैजार्ड से निबटने को बने ठोस कार्यशाला।
5. बहुमंजिली इमारतों पर टावर लगाने पर प्रतिबंध् लगे।
6. टावर की एसएआर का खुलासा होना चाहिए।
टीवी और माइव्रफोवेव भी बाँट रहे बीमारियाँ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ;डब्ल्यूएचओद्ध का यह खुलासा कि मोबाइल पफोन का ज्यादा इस्तेमाल ब्रेन वैंफसर का कारण बन सकता है, चैंका देने वाला है। डब्ल्यूएचओ का मोबाइल पफोन पर हुआ यह शोध् रोजमर्रा में इस्तेमाल हो रही जरूरी चीजों वेफ बारे में भी सोचने पर मजबूर करता है।
टीवी, सीएपफएल, माइव्रफोवेव आदि जैसी चीजें जो जिंदगी का अहम हिस्सा बन गई है, पर सेहत पर चुपवेफ-चुपवेफ असर डाल रही है। यह नुकसान है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन का। यह भले ही रेडियोएक्टिव पदार्थ जैसे यूरेनियम, थोरियम आदि से निकलने वाले रेडिएशन से कम हो लेकिन लम्बे समय में यह अपना वुफप्रभाव दिखाता जरूर है। हमारे घरेलू बिजली व संचार उपकरणों से रेडियो प्रिफक्वेंसी निकलती है इन्हें एक्सट्रीम लो प्रिफक्वेंसी ;ईएलएपफद्ध कहते हैं।
वैफसे होता है नुकसान: लेक्टोमैग्नेटिक रेडिएशन में बिजली और चुम्बकीय उफर्जा की तरंगे प्रकाश की गति वेफ एक साथ मूव करती हैं। नुकसान तब होता है जब शरीर में रेडियो प्रफीक्वेंसी अध्कि मात्रा में पहुँचती है, जिससे टिश्यू क्षतिग्रस्त होने लगते हैं। ठीक वैसे ही जैसे माइव्रफोवेव में कोई खाने की चीज पकती है।
लैपटाॅप से बनाए दूरी: एलसीडी में न्यूनतम रेडियोप्रफीक्वेंसी निकलती है। लैपटाॅप पर काम करते समय उचित दूरी बनाए रखें। कोशिश करें इसे टेबल पर या डेस्क पर और 30 सेमी की दूरी बनी रहे।
किससे खतरा: मोबाइल पफोन, टीवी, कम्प्यूटर, लैपटाॅप, प्रिंटर, वाई-पफाई डिवाइस, माइव्रफोवेव ओवन, कार्डलेस टेलीपफोन
नुकसान: अनिद्रा, एलर्जी, पाचन तंत्रा में गड़बड़ी।
सेहत बिगाड़ सकता है बु(ु बक्सा
घंटो टीवी से चिपवेफ रहने वाले लोग अलर्ट हो गया। आपकी यह आदत आपको बीमारियों की चपेट में जकड़कर अकाल मौत का शिकार बना सकती है।
हार्वर्ड स्वूफल आॅपफ पब्लिक हेल्थ ;एचएसपीएचद्ध द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन वेफ अनुसार, ज्यादा समय तक टीवी देखने से टाइप मध्ुमेह, दिल वेफ रोग और समय पूर्व मौत का खतरा बढ़ जाता है। शोध्कर्ताओं का कहना है कि रोज दो घ्ंाटे से अध्कि समय तक टीवी देखने से टाइप टू मध्ुमेह का खतरा 20 प्रतिशत, दिल वेफ रोग का खतरा 15 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। जबकि तीन घंटे से ज्यादा टीवी देखने से समय पूर्व मौत की आशंका 13 पफीसदी बढ़ जाती है।
हमें न सिर्पफ अपनी शारीरिक गतिविध्यिों का स्तर बढ़ाना चाहिए बल्कि शरीर को गतिहीन बनाने वाली आदतों से भी दूर रहना चाहिए। जाहिर है टीवी कार्यव्रफम देखने वेफ दौरान हम लम्बे समय तक बैठे रहते हैं और यह सेहत वेफ लिए ठीक नहीं है। अनुसंधनकर्ताओं वेफ अनुसार, विश्व में ज्यादातर लोग दिन वेफ समय काम करते हैं और रात वेफ समय टीवी और सोने में बिताते हैं। ऐसे में उन्हें शारीरिक गतिविध्यिो वेफ लिए समय नहीं मिल पाता है। यूरोपीय और आॅस्ट्रेलियाई लोेग टेलीविजन देखने में तीन से चार घंटे का समय गुजारते हैं, जबकि अमेरिकी टीवी पर औसतन पाँच घंटे खर्च करते हैं।