बच्चों की गायब होती नींद


अध्ययन-शैली हमारे बच्चों को इस कदर तनाव और अनिद्रा की सौगात दे रही है कि खुद प्रधानमंत्राी नरंेद्र मोदी को इस मसले में दखल देने की जरूरत महसूस हुई। बीते शुव्रफवार को बच्चों वेफ साथ अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने कहा भी, फ्पढ़ाई में इतने न डूब जाओ कि जो वुफछ करने में मन रमता है, उससे ही कट जाओ।य्
पफाइनल एग्जाम वेफ करीबी हफ्रतों में 70 पफीसदी से अधिक बच्चे जरूरी सात घंटे की नींद भी नहीं ले पाते, जबकि 18 पफीसदी बच्चे दिनभर में महज तीन से चार घंटे सोते हंै। यह उस सर्वे का नतीजा है, जो देश वेफ विभिन्न शहरों में करीब 6,500 बच्चों पर किया गया। इस अध्ययन में शामिल हर तीन में से दो बच्चों का कहना था कि उन पर क्षमता से अधिक होमवर्वफ और असाइनमेंट का भार है। कई ने तो यह भी कहा कि पढ़ाई वेफ दबाव वेफ कारण उन्हें घर से बाहर निकलने या परिवार वेफ अन्य सदस्यों और दोस्तों से बातें करने तक का वक्त नहीं मिल पाता।
सर्वे की मानें, तो इस तरह की जीवन-शैली, जो सेहतमंद तो नहीं ही है, उसमें किसी तरह की शारीरिक या सामाजिक गतिविधियों का न होना या नाममात्रा का होना परीक्षा वेफ दौरान छात्रों पर खासा दबाव बढ़ा रहा है। पफोर्टिस हेल्थवेफयर वेफ इस अध्ययन में दिल्ली-एनसीआर, मुंबई, बेंगलुरफ, चेन्नई, कोलकाता, जयपुर, चंडीगढ़ सहित दर्जनभर बी-श्रेणी यानी बड़े शहरों वेफ बच्चों को शामिल किया गया है। 
काम ही काम, खेलों से दूरी  
सर्वे में शामिल करीब 86 पफीसदी बच्चों का कहना था कि परीक्षा वेफ आखिरी हफ्रतों में वे शारीरिक गतिविधियों वेफ लिए दिन भर में आधे घंटे का वक्त भी नहीं निकाल सवेफ, जबकि 68 पफीसदी बच्चों का मानना था कि पूरे सप्ताह वह एक घंटा से भी कम समय घर से बाहर गुजार सवेफ। पफोर्टिस हेल्थवेफयर में मानसिक स्वास्थ्य और व्यवहार विज्ञान विभाग वेफ निदेशक डाॅú समीर पारिख कहते हैं, 'अध्ययन में हमने यह देखा कि परीक्षाओं वेफ दौरान बच्चे पूरी तरह से अपने घरों या कमरों में वैफद हो जाने हैं। यहाँ तक कि पढ़ाई वेफ बीच में मिलने वाले पुफरसत वेफ पलों में भी वे कमरों में ही रहते हैं। जबकि उन्हें घर से बाहर निकलना चाहिए, बेशक 10 मिनट की पुफरसत ही क्यों न हो। बालकनी या छत पर टहलना सोशल मीडिया पर वक्त बिताने से कहीं अधिक सुवूफनदेह साबित होता है।' 
सर्वे में पाया गया है कि 73 पफीसदी बच्चे परिवार वेफ साथ एक घंटे से भी कम वक्त बिताते हैं और महज एक प्रतिशत बच्चे परिवार वेफ साथ रोजाना तीन घंटे से अधिक समय गुजार रहे हैं। डाॅú पारिख की मानें, तो कई बच्चे परिजनों वेफ साथ बैठकर खाना तक नहीं खाते। बच्चों का परिजनों और मित्रों से बातें न करना उनमें तनाव बढ़ाने की वजह बन रहा है।'
छात्रों को जो पुफरसत वेफ पल मिलते भी हैं, वे उसे सोशल मीडिया पर जाया कर रहे हैं। सर्वे में करीब 34 पफीसदी बच्चों ने माना कि उन्होंने एक से तीन घंटे वफम्प्यूटर या स्मार्टपफोन पर बिताए, हालाँकि ऐसा करने का कारण उनका होमवर्वफ भी था, वहीं 11 पफीसदी विद्याथियों ने पाँच से सात घंटे आॅनलाइन रहना कबूला।
दौड़-भाग का जीवन
गुरफग्राम वेफ सालवान पब्लिक स्वूफल की 12 वीं की छात्रा मानसी शर्मा जब बोर्ड परीक्षाओं को लेकर दबाव में आ गईं, तो स्वूफल वेफ काउंसलर ने उनसे कहा कि वह खुद पर भरोसा रखे, और सबसे महत्त्वपूर्ण बात कि एक टाइमटेबल बनाकर उसका बखूबी पालन करे। मानसी बताती है, फ्एक विषय को पढ़ते समय मैं उन दूसरे विषयों वेफ बारे में सोचती रहती थी, जो मुझे बाद में पढ़ना होता था। इस तरह मैं किसी भी विषय पर अपना ध्यान वेंफद्रित नहीं कर पाती थीं।य्
फ्सब वुफछ व्यवस्थित कर लेने पर तनाव कापफी कम हो जाता है।य् यह कहते हुए ज्योति चैधरी बताती है कि, फ्मैं सभी छात्रा-छात्राओं को एक टाइमटेबल बनाने को कहती हूँ। इससे वे उन तमाम विषयों पर अधिक समय दे सकते हैं, जिन पर उन्हें लगता है कि ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। इसवेफ बाद मैं उन्हें पिछली उत्तर पुस्तिकाओं यानी पिछली परीक्षा की काॅपियों को पिफर से देखने वेफ लिए कहती हूँ। इससे वे अपनी गलतियाँ समझ सकते हैं और उन्हें दोहराने से बच सकते हैं।य् ज्योति ने ही मानसी की काउंसलिंग की है। वह सालवान पब्लिक स्वूफल में मनोविज्ञान विभाग की प्रमुख हैं। 
यहाँ यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि टाइमटेबल ऐसा बनाया जाना चाहिए कि छात्रा वेफ वक्त का पूरा सदुपयोग हो सवेफ। ज्योति की मानें, तो वुफछ छात्रा रात में कहीं अधिक मन लगाकर पढ़ते हैं, जबकि वुफछ की आदत सुबह की होती है। लिहाजा जरूरी यह है कि टाइमटेबल इस तरह बने कि उन्हें अपनी नींद से कोई समझौता न करना पड़े। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन की इच्छा है, तो स्वस्थ खान-पान, रात की अच्छी नींद और आराम वेफ अच्छे तरीवेफ खूब पफायदा पहुँचाते हैं। मानसी कहती हैं कि, फ्ज्योति मैडम ने उन्हें यह भी बताया कि वैफसे फ्रलो-चार्ट बनाया जाता है और वैफसे नीमाॅनिक्स ;याददाश्त सुधारने की तरकीबद्ध जबसे मैंने टाइमटेबल वेफ हिसाब से अपनी पढ़ाई शुरू की है, मैं न सिर्पफ कहीं अधिक तनाव-मुक्त हूँ, बल्कि पढ़ाई पर ध्यान भी खूब लगा पा रही हूँ।य्
मीरा माॅडल स्वूफल की कहानी वुफछ अलग है। पश्चिम दिल्ली वेफ इस स्वूफल में 'लाइपफ स्किल्स' यानी जीवन-कौशल से जुड़े प्रशिक्षण कक्षा नौ से ही शुरू हो जाते हैं। स्वूफल की प्राध्यापक साधना भल्ला कहती हैं, फ्यह सिर्पफ पठन-पाठन का ही मसला नहीं है, बल्कि जीवन का हिस्सा है। इससे छात्रों में अपनी सीमाओं को लेकर समझ विकसित होती है। वे जरूरत वेफ वक्त 'न' कहने का साहस जुटा पाते हैंऋ पिफर चाहे वह मामला आपसी सहमति का हो, जेंडर का या पिफर सेक्सुएलिटी का। निश्चित ही ये शैक्षणिक मुद्दे नहीं हैं, लेकिन जब छात्रों को लगता है कि उनवेफ पास ऐसे मंच हैं, जहाँ वे अपनी चिंताएँ साझा कर सकते हैं, तो वे न सिर्पफ अपनी परेशानियों का हल ढूँढ लेते हैं, बल्कि पढ़ाई पर भी कहीं अधिक  ध्यान दे पाते हैं।य् परीक्षा वेफ तनाव से निपटने वेफ लिए स्वूफल एक 'मेंटाॅरशिप प्रोग्राम' ;परामर्श कार्यव्रफमद्ध भी चलाता है, जिसवेफ तहत हर शिक्षक पाँच बच्चों को पढ़ाई व निजी जीवन से जुड़े तनावों को खत्म करने में मदद करते हैं।
मदद को बढ़ते हाथ
माता-पिता और अभिभावक की अनुचित उम्मीदें भी पहली बार स्वूफल से बाहर परीक्षा दे रहे बच्चों में तनाव बढ़ाती हैं। डाॅú पारिख कहते हैं, फ्अगर आप किसी भी 20 अभिभावक से पूछें कि क्या वे अपने बच्चों पर दबाव डालते हैं, तो वे सभी इससे सापफ इनकार कर देंगे। पिफर भी यदि उनवेफ बच्चे तनाव में हैं, तो वे अभिभावकों की भूमिका निभाएँ। अगर उन्हें लगता है कि बच्चा जरूरी पढ़ाई नहीं कर रहा है, तब जबरन पढ़ाने की बजाए मिलनसार रवैया अपनाएँ।य्
और हाँ, अभिभावक बच्चों वेफ सामने दूसरे की नजीर न पेश करें। डाॅú पारिख की मानें तो, फ्अच्छे नतीजे लाने वेफ लिए बच्चों को प्रोत्साहित करने की बजाए माता-पिता उन्हें दूसरे बच्चे का उदाहरण देकर वैसा बनने को कहते हैं। इससे न सिर्पफ बच्चों का आत्म-सम्मान डिगता है, बल्कि उनका खुद पर विश्वास भी टूटने लगता है। लिहाजा इससे बचना ही चाहिए।