एक्युप्रेशर उपचार अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रहा। घर-घर में अपनाई जानेवाली विध एक्युप्रेशर एक प्राचीन चिकित्सा पद्वति है। जिसवेफ सूत्रा आयुर्वेद में, भारतीय साहित्य में, तथा प्रावृफतिक चिकित्सा पद्वतियों में स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं। यह उपचार विध स्व उपचार वेफ रूप में लोकप्रिय हो चुकी है। शरीर में विद्यमान उपचार की इस अद्भुत क्षमता को ही वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करवेफ वुफछ महान वैज्ञानिकों ने एक्युप्रेशर को अन्य प्रचलित विधओं वेफ समकक्ष प्रतिस्थापित कर दिया है। निरंतर हो रहे चिंतन तथा अनुसंधन वेफ पफलस्वरूप ही अब एक्युप्रेशर वेफ माध्यम से छोटी-मोटी व्याध्यिों से लेकर असाध्य कही जाने वाली, वैंफसर, डाइबिटीज, हाई-बीúपीú, हार्ट समस्या आदि लाइलाज बीमारियों का भी सपफलतापूर्वक उपचार किया जा रहा है।
एक्युप्रेशर दो शब्दों वेफ योग से बना है। एक्यु$प्रेशर एक्यु का शाब्दिक अर्थ है, सुई, तथा प्रेशर का तात्पर्य दबाव से है। सुई की नोक वेफ समान बिन्दु पर दबाव देकर उपचार करना ही एक्युप्रेशर का आशय है। इन सूक्ष्म बिंदुओं पर दबाव देने वेफ माध्यम कई प्रकार वेफ हो सकते हैं। जैसे कि बीज, सुई, कोई नुकीली वस्तु या चुम्बक ;मैग्नेटद्ध इत्यादि।
अब आप सोचेंगे, कि यह आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर क्या है? आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर स्पष्टतः दो शब्दों वेफ माध्यम से ज्ञान वेफ दो विलक्षण आयामों को अपने अंदर समेटे हुए हैं। वास्तव में आयुर्वेद और एक्युप्रेशर दो स्वतः सि( विचारधराएं हैं, जिनवेफ अद्भुत मिलन वेफ परिणाम स्वरूप यह विलक्षण साध्न मानव हित में अस्तित्व में आया है।
सामान्यतया, आयुर्वेद का तात्पर्य हम वेफवल वैद्य और आयुर्वेदिक औषध्यिों वेफ संदर्भ में ही जानते व समझते हैं। मगर ऐसा नहीं है। आयुर्वेद दो शब्दों आयु-वेद से मिलकर बना हैं वेद जहाँ ज्ञान वेफ पर्याय वेफ रूप में प्रयुक्त है, वहीं आयु का आशय, जन्म से लेकर मृत्यु वेफ बीच की अवध् िका संपूर्ण अध्ययन आयुर्वेद का विषय है। यह अवध् िही सम्पूर्ण सृष्टि, संसार, समाज, मनुष्य और उसवेफ व्रिफयाकलाप आदि का विषय है।
हम सभी यह पढ़ते व जानते आए हैं, कि हमारा यह शरीर पाँच तत्वों-आकाश, वायु, अग्नि, जल तथा पृथ्वी से मिलकर बना है। इससे भौतिक शरीर का निर्माण हुआ है। मगर हमारा शरीर भौतिक व पराभौतिक सत्ता वेफ अद्भुत संगम का एक विलक्षण उदाहरण है। वस्तुत जिस प्रकार से पांच तत्वों के संयोग से भौतिक जगत् या भौतिक शरीर का निर्माण होता है, उसी प्रकार पांच पराभैतिक तत्वों वेफ संयोग से पराभौतिक जगत् या पराभौतिक शरीर का निर्माण होता है। इन्हीं पांच परा भौतिक तत्वों का स्पष्ट उल्लेख आयुर्वेद में किया गया है। इन्हीं दसों तत्वों को चिकित्सा में आधर बना कर एक्युप्रेशर द्वारा उपचार किया जाता है।
इसको इस प्रकार और अच्छी तरह से समझ सकते हैं। मनुष्य वेफ ज्ञान तथा कर्म का आधर उसकी इन्द्रियाँ होती है। इनवेफ संचालन का माध्यम 'मन' तथा सबका नियंत्राक चेतना का आधर 'आत्मा' होती है। 'काल' यानी समय उसे दृष्टिपटल पर लाता है। उस कर्म की एक निर्धरित 'दिशा' होती है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि पांच भौतिक तत्वों वेफ अतिरिक्त पांच पराभौतिक तत्व भी ब्रह्माण्ड तथा पिण्ड वेफ निर्माण तथा संचालन वेफ लिए उत्तरदायी हैं।
वे पांच तत्व हैंµकाल, दिशा, मन तथा आत्मा। पाँचवा है तम, यानी अंध्कार, जहाँ से इस पूरी सृष्टि का निर्माण हुआ है। उदाहरणस्वरूप बीज का अंवुफरण मिट्टी में अंध्कार में होता है। भ्रूण का निर्माण माता वेफ गर्भ में अंध्कार में होता है।
आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर में इन्हीं दस तत्वों का उपचार किया जाता है। सरल भाषा में यों कहें, कि आयुर्वेद वेफ सि(ांतों वात, पित्त तथा कपफ आदि वेफ आधर पर दस तत्वों वेफ रोगों का वर्गीकरण करवेफ एक्युप्रेशर द्वारा उपचार करना ही आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर कहलाता है।
यहाँ शरीर में स्थित चव्रफों पर रंगों द्वारा उपचार आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर द्वारा दिया जा रहा है। आप भी इन सामान्य रोगों में इसका प्रयोग करवेफ लाभ उठा सकते हैं।
आयुर्वेदिक एक्युप्रेशर