समाप्ति की दिशा में बहता पेयजल


हमने अपनी आठवीं कक्षा में भौतिक वैज्ञानिक लेवोशिए द्वारा दिया गया द्रव्य ;पदार्थद्ध की अविनाशिता का नियम पढ़ा था। जिसवेफ अनुसार द्रव्य का न तो निर्माण संभव है न विनाशऋ वेफवल उसका स्वरूप बदला जा सकता है। इस लेख का सम्बन्ध् उपरोक्त नियम को समझाना नहीं है परन्तु जब मैं इस नियम को याद करता हूँ तो मन में विचार आता है कि जल का विनाश तो हो नहीं सकता अर्थात हमारी पृथ्वी पर 70» जल है और हमेशा इतना ही रहेगा और पीने योग्य जल सम्पूर्ण जल का 3» है तथा वह भी उतना ही रहेगा परन्तु मैं भूल गया था हम जल का विनाश तो नहीं कर सकते लेकिन उसका स्वरूप तो बदल सकते हैं। हमने वही किया जो हमारे पास 3» पेयजल था उसका ऐसा स्वरूप परीवर्तित किया कि आज हमारे सामने पेयजल की समस्या एक विनाशकारी रूप में खड़ी है। यदि हम भौतिक वेफ नियमों को बदल सकते तो शायद मानव की उत्पत्ति से लेकर आज तक हमने सम्पूर्ण जल का विनाश भी कर दिया होता।
   ईश्वर द्वारा हमें दो अमूल्य वृफति प्राणवायु ;हवा जिससे हम श्वास लेते हैंद्ध और पेयजल निःशुल्क प्रदान किये गये थे लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि ये दोनों ही अमूल्य वृफति हमारे लिए बिना शुल्क शु( रूप में उपलब्ध् नहीं है और शायद भविष्य में मूल्य देकर भी प्राप्त न हो। वर्तमान में वायु तो निःशुल्क उपलब्ध् है लेकिन प्रदूषित अवस्था में जबकि शु( जल वेफवल शुल्क देकर ही प्राप्त किया जा सकता है। हमने मानव सभ्यता को विकसित करने वेफ लिये पेयजल का अत्यन्त तीव्र गति से दोहन किया है। इमने पेयजल को पहले नदियों में पिफर तालाबों में पिफर वुँफओं में पिफर नलवूफपों में देखा लेकिन आज सिर्पफ बोतल में देखने को मिलता है। और निकट भविष्य में बोतल में भी ये न मिले यह व्रफम पेय जल की समाप्ति का सम्पूर्ण चव्रफ है। 
   यद्यपि समुद्रों में उपस्थित खारा पानी वुफदरत वेफ मौसम चव्रफ द्वारा वर्षा वेफ रूप में शु( जल में परीवर्तित हो जाता है और इस चव्रफ में पेड़-पौध्े बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं क्योंकि वनों द्वारा ही वातावरण में पानी वाष्प वेफ रूप में उत्सर्जित किया जाता है और गर्मी वेफ मौसम में जल ड्डोतो से पानी उच्च तापमान वेफ कारण वाष्प बनकर उड़ता है और बादल बनाता है और पेड़-पौधें द्वारा छोड़ा वाष्प वेफ रूप में छोड़ा गया पानी बादलों में चला जाता है जिससे वे भारी होकर वर्षा वेफ रूप में पृथ्वी पर पुनः शु( रूप में प्राप्त होता है। लेकिन हमने शहरीकरण वेफ लिए वनों की मात्रा भी बहुत तीव्र गति से पेयजल की भारी कमी को देखते हुए वर्ष 1992 में संयुक्त राष्ट्र ने अपने अध्विेशन में 22 मार्च को 'विश्व जल दिवस' वेफ रूप में मनाने का संकल्प लिया। 'विश्व जल दिवस' की अंतराष्ट्रीय पहल रियो 'डिजेनेरियो' में 1992 में आयोजित 'पर्यावरण तथा विकास का सयुक्त राष्ट्र सम्मेलन' ;न् छ ब् म् क्द्ध में की गई थी, जिस पर सर्वप्रथम 1993 को पहली बार 22 मार्च वेफ दिन पूरे विश्व में 'जल दिवस' वेफ अवसर पर सम्पूर्ण विश्व में जल संरक्षण और रख-रखाव पर जागरूकता पैफलाने का कार्य किया गया।
   22 मार्च 2019 को भी विश्व जल दिवस का आयोजन किया गया जिसका मुख्य विषय 'किसी को पीछे नहीं छोड़ना ;स्मंअपदह दव वदम इमीपदकद्ध' था जो कि 2030 वेफ सतत् विकास वेफ लक्ष्य 6 ;ै क् ळ 6द्ध का ही एक स्वरूप था। किसी को पीछे नहीं छोड़ने से तात्पर्य यह है कि हस्थ पर उपस्थित जनता को भी पीने योग्य पानी मुहिम करना हैं इस उपलक्ष पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियों गुटेरेश ने संदेश दिया तथा निम्नलिखित तथ्यों से अवगत कराया। 
1. सम्पूर्ण विश्व में 2.1 अरब लोगों वेफ पास स्वच्छ जल वेफ प्रबन्ध् का कोई साध्न उपलब्ध् नहीं है।
2. चार में से एक विद्यालय वेफ पास पेयजल की कोई सुविध नहीं है और दूषित पानी पीने वेफ लिए मजबूर है।
3. 700 से ज्यादा बच्चे पाँच वर्ष की आयु में अशु( जल पीने वेफ कारण अतिसार की बीमारी से मर जाते हैं। 
4. दस में से आठ घरों में पानी की कोई व्यवस्था नहीं है और स्त्राी एवं लड़कियाँ पानी एकत्रा करने वेफ लिये बाहर जाती है। 
5. वैश्विक स्तर पर 80 » अपशिष्ट जल बिना उपचार किये पुनः वातावरण में बहा दिया जाता है। 
6. वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 70 » जल सिंचाई वेफ लिए 20 » उद्योग-ध्ंधें वेफ लिए एवं 10» जल घरेलू उपयोग में लाया जाता है। गौरवतलब है कि 1» से भी कम पानी पीने वेफ लिए प्रयोग में लाया जाता है। 
7. लगभग 4 अरब लोग प्रतिवर्ष एक महा वेफ लिए जल की भारी कमी का सामना करते हैं।
8. 2030 तक लगभग 70 करोड़ लोग जल की कमी वेफ कारण विस्थापित हो जायंेगे।
9. 2050 विश्व की जनसंख्या 2 अरब और बढ़ जायेगी और जल की आवश्यकता वर्तमान से 30» ज्यादा होगी। 
   उपरोक्त सभी तथ्य चैकाने वाले है जो यह प्रतिबिम्बित कर रहे हैं कि पृथ्वी पर पेयजल शीघ्र अतिशीघ्र समाप्ति की दिशा में बहता जा रहा है और जिसको रोकना नितांत आवश्यक है। 
   उपरोक्त स्थिति को देखते हुए प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी जी ने जल संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए है। 
   प्रधनमंत्राी नरेन्द्र मोदी जी ने 'मन की बात' कार्यव्रफम द्वारा प्रत्येक क्षेत्रा वेफ मन्त्रिायों एवं नेताओं को जल संरक्षण अभियान चलाने वेफ लिए जाग्रत किया। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार 'स्वच्छ भारत मिशन' को प्रारम्भ किया था ठीक उसी प्रकार जल संरक्षण अभियान को भी आरम्भ करना होगा। इसवेफ तहत वुफछ योजनाएं एवं नये मंत्रालयों की शुरूआत की गयी है जिसमें दो मुख्य हैµ 
   जल शक्ति मंत्रालय एवं अटल भूजल योजना।
   परन्तु इस सबवेफ बाद भी हमें वुफछ नई सोच की जरूरत होगी जिसमें से एक है प्रवृफति आधरित हल अर्थात् हमें जल संरक्षण वेफ लिए प्रवृफति आधरित हल निकालने होगे। गौरतलब है पिछले वुफछ दशकों में प्रति वर्ष जी की माँग 1» से बढ़ रही है। इस बढ़ोत्तरी में सबसे बड़ा योगदान औद्योगिक जल का है सिंचाई जल की तुलना में। अतः हमें सबसे पहले जनसंख्या पर रोक लगानी होगी जिसवेफ पफलस्वरूप हम सिंचाई जल एवं औद्योगिक जल की माँग को काम कर सवेंफ, वनों की कटाई को कम कर सवेंफ, वृफषि योग्य भूमि पर वृक्षारोपन कर सवेंफ इत्यादि। हमें वर्षा जल सग्रहण वेफ नये आयाम स्थापित करने होगे तथा वायु प्रदूषण कम करना होगा। जिससे वैश्विक तपन कम हो सवेफ। हमें यह भी सिखना होगा कि हम पेयजल को व्यर्थ वेफ कार्यों में नष्ट न करें। 
   अंत में यही कहना चाहता हूँ कि लेख लिख देने से या उसे पढ़ लेने से या नवीन योजनाए शुरू कर लेने मात्रा से इस समस्या का समाधन नहीं होगा अब हम सबको साथ मिलकर इस समस्या का निवारण यथार्थ वेफ ध्रातल पर करना होगा अन्यथा वो दिन दूर नहीं जब अरले सागर की  भाँति इस पृथ्वी पर जीवन विलुप्त हो जायेगा।