कूडे़ की  समस्या 

कूड़े की समस्या आज किसी एक घर की नहीं अपितु पूरे देश की हो गई है। दिन प्रतिदिन विकराल रूप लेती वूफड़े की समस्या ने जनमानस की ही नहीं अपितु प्रशासन व सरकार की नींद उड़ा रखी है। ऐसे में इसवेफ भयंकर परिणाम बीमारियों वेफ द्वारा हमारे सामने आ रहे हैं। यहाँ वुफछ ताजा उदाहरणों वेफ साथ वूफड़े की बढ़ती समस्या पर प्रकाश डाल रहे हंै वरिष्ठ पत्राकार पंकज चतुर्वेदी
तीन सप्ताह दिल्ली वेफ गाजीपुर में वूफड़े वेफ पहाड़ वेफ गिरने का हादसा हुआ तो कहा गया कि पानी अब सिर से गुजर रहा है, हमें जल्द ही वूफड़े वेफ निस्तारण वेफ बारे में वुुफछ सोचना होगा। पफौरी तौर पर उस जगह वूफड़े का और ढेर लगने पर रोक लगा दी गई। लेकिन अब खबर आई है कि महानगर का वूफड़ा पिफर से गाजीपुर पहुँचने लगा है। यह तो होना ही था, क्योंकि वूफड़े वेफ मामले में हमारे विकल्प कापफी सीमित हैं। नेशनल एनवायरमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर वेफ मुताबिक देश में हर साल 44 लाख टन खतरनाक कचरा निकल रहा है। हमारे देश में औसतन प्रति व्यक्ति 20 ग्राम से 60 ग्राम कचरा हर दिन निकलता है। इसमें से आधे से अधिक कागज, लकड़ी या पुट्ठा होता है, जबकि 22 पफीसदी घरेलू गंदगी होती है। इतने सारे कचरे को एकत्रा करना, पिफर उसे दूर तक ढोकर ले जाना महँगा व जटिल काम है। यह सरकार भी मानती है कि देश वेफ वुफल वूफडे़ का महज पाँच प्रतिशत  का ईमानदारी से निबटान हो पाता है। राजधानी दिल्ली का तो 57 प्रतिशत वूफड़ा परोक्ष या अपरोक्ष रूप से यमुना में बहा दिया जाता है। कागज, प्लास्टिक, धातु जैसा कई वूफड़े तो कचरा बीनने वाले जमा करवेफ रीसाइक्लिग वालों को बेच देते हैं। सब्जी वेफ छिलवेफ, खाने-पीने की चीजें, मरे हुए जानवर आदि वुफछ समय में सड़-गल जाते हैं। मगर ऐसा बहुत वुफछ बच जाता है, जो विकराल संकट का रूप लेता जा रहा है।
असल में, कचरे को बढ़ाने का काम समाज ने ही किया है। अभी वुफछ साल पहले तक दूध भी काँच की बोतलों में आता था या पिफर लोग अपने बर्तन लेकर डेयरी जाते थे। अनुमान है कि पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियाँ और दो करोड़ पानी की बोतलें वूफड़े में पेंफकी जाती हैं। मेकअप का सामान, घर में होने वाली पार्टी में डिस्पोजेबल बरतनों का प्रचलन, बाजार से सामान लाते समय पाॅलिथीन की थैलियाँ लेना, हर छोटी-बड़ी चीज की पैंकिंग, ऐसे ही न जाने कितने तरीवेफ हैं, जिनसे हम वूफड़ा-कबाड़ा बढ़ा रहे हैं। सपफाई और खुश्बू  वेफ नाम पर बढ़ रहे साबुन व अन्य रसायनों वेफ चलन ने भी अलग किस्म वेफ कचरे को बढ़ाया है। सबसे खतरनाक वूफड़ा तो बैटरियों, वंफप्यूटरों और मोबाइल का है, इसमें पारा, कोबाल्ट और न जाने कितने किस्म वेफ जहरीले रसायन होते हैं। एक वंफप्यूटर का वजन लगभग 3.15 किलोग्राम होता है। इसमें 1.9 किलोग्राम लेड, 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता है, शेष हिस्सा प्लास्टिक होता है। ऐसी अधिकांश सामग्रियाँ गलती-सड़ती नहीं और जमीन में जज्ब होकर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने और भूगर्भ जल को जहरीला बनाने का काम करती हैं। ठीक इसी तरह का जहर बैटरियों व बेकार मोबाइल से भी उपज रहा है। भले ही अदालतें समय-समय पर पफटकार लगाती रही हों, लेकिन अस्पतालों से निकलने वाले वूफड़े का सुरक्षित निबटान दिल्ली, मुंबई व अन्य महानगरों से लेकर छोटे कस्बों तक संदिग्ध है।
अभी हर रोज सात हजार मीट्रिक टन कचरा उगलने वाला महानगर दिल्ली वर्ष 2021 तक 16 हजार मीट्रिक टन कचरा पैदा करेगा। दिल्ली वेफ अपने वूफड़ा-ढलाव पूरी तरह भर गए हैं और आसपास 100 किलोमीटर दूर तक कोई नहीं चाहता कि उनवेफ गाँव-कस्बे में वूफड़े का अंबार लगे।
कहने को दिल्ली में दो साल पहले पाॅलिथीन की थैलियों पर रोक लगाई जा चुकी है, पर आज भी प्रतिदिन 583 मीट्रिक टन कचरा प्लास्टिक का ही है। इलेक्ट्राॅनिक और मेडिकल कचरा तो यहाँ वेफ जल और जमीन को जहर बना रहा है। हाल ही में गाजियाबाद नगर निगम ने दिल्ली नगर निगम वेफ ऐसे दो ट्रकों को पकड़कर पाँच-पाँच हजार रफपये का जुर्माना लगाया था, जो दिल्ली का कचरा सीमावर्ती गाजियाबाद की काॅलोनियों में रात में चुपवेफ से पेंफक रहे थे।
वूफड़ा अब नए तरह की आपफत बन रहा है, सरकार उसवेफ निबटान वेफ लिए तकनीकी व अन्य प्रयास भी कर रही है, मगर असल में कोशिश तो कचरे को कम करने की होनी चाहिए। इसवेफ लिए वेफरल वेफ कन्नूर जिले का उदाहरण सामने है कि जब जिला प्रशासन व समाज ने ठान लिया, तो अब वहाँ न तो पाॅलिथीन मिलती है और न ही डिस्पोेजबल बरतन और न ही रीपिफल वाले बाॅल पेन।