कैसे करें वन प्रबंधन


वनों की उपयोगिता तथा वनों वेफ विनाश वेफ दुष्परिणामों वेफ परिपेक्ष्य में वन संरक्षण की आवश्यकता को आज वेफ मानव ने गंभीरता से समझा है, यही कारण है कि वन-विज्ञान वनारोपण तथा वन-प्रबंध् इत्यादि विषयों को पर्याप्त महत्व दिया जाने लगा है।
वन प्रबंध्न की दो प्रमुख विचारधराएँ हैं। प्रथम विचारधरा वेफ वन विशेषज्ञों वेफ अनुसार वनों का प्रबंध् रेशा पफसल वेफ रूप में इसी प्रकार से किया जाना चाहिए जिस प्रकार से हम मक्का या दूसरी खाद्य पफसलें उपजाते हैं। इनका मत है कि जनसंख्या में वृ(ि वेफ साथ प्रति व्यक्ति रेशा उपयोग बढ़ेगा, तदनुसार वन उत्पादनों की माँग में वृ(ि होगी तथा इनकी पूर्ति वेफ लिए वृक्षों तथा अन्य रेखा युक्त पौधें की 'खेती' ही एक मात्रा हल है। दूसरी विचारधरा वेफ लोगों वेफ अनुसार वनों वेफ साथ पफसलों वेफ समान व्यवहार करना उचित नहीं है। क्योंकि इनकी उपयोगिता मनोरंजन स्थलों, वन्य जीवन से आवास इत्यादि बहुउपयोगी कार्यों में भी अत्यध्कि है। यहाँ यह ध्यान रखना उचित होगा कि वृक्षों वेफ पफार्म तथा प्रावृफतिक बहुउपयोगी वन दो बिलवुफल ही विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रा हंै।
इस प्रकार वन प्रबंध् वेफ अनेक मार्ग हैं, जिनमें एक यह है कि वनों को प्रावृफतिक अवस्था में जैसा का तैसा ही छोड़ दिया जाए। पर यह व्यावहारिक नहीं होगा। क्योंकि वनों का उपयोग विभिन्न कार्यों हेतु करने वेफ लिए वन पारिस्थितिक तंत्रा में वुफछ अंशों तक परिवर्तन करने ही होंगे। विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु आवश्यक परिवर्तनों का विवरण निम्नानुसार हैµ
मनोरंजन वेफ लिए 
यदि वन्य जीवों को अध्कितम पारिस्थितिक तंत्रा उपलब्ध् कराते हुए जंगली जातियों वेफ पौधें को विध्वित बनाए रखना ही मुख्य उद्देश्य हो तो एक प्रबंध् तंत्रा की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार यदि वन का प्रबंध् जनसामान्य वेफ मनोरंजन हेतु किया जाना है। तो दूसरे उद्देश्यों वाले वनों की अपेक्षा उसे अध्कि खुला रखना होगा, जिससे दर्शनीय स्थलों तक पहुँच सुगम हो तथा वन्य जीवों वेफ लिए भी आवास स्थलों की विविध्ता हो।
काष्ठ प्राप्ति वेफ लिए 
वनों वेफ लकड़ी उत्पादन वेफ महत्वपूर्ण तथा यथार्थ में प्राथमिक उद्देश्य की प्राप्ति की दृष्टि से वन प्रबंध् की अनेक विध्यिाँ है।
;पद्ध समुदाय का वांछित स्तर बनाए रखना: परिपक्व अवस्था की अपेक्षा तरुण अवस्था में वृक्ष प्रति एकड़ अध्कि सेलुलोस उत्पन्न करते हैं। इसी प्रकार अगर लुग्दी, काष्ठ या काष्ठ खपच्चियों या जलाउफ लकड़ी की आवश्यकता होती है तो अध्किाँश क्षेत्रापफल को 'तरुण प्रजननशील वन' की अवस्था में बनाए रखा जाता है तथा पौधें की वृ(ि की दर कम हो इसवेफ पहले ही, परिपक्व अवस्था तक पहुँचने वेफ पहले ही उन्हें काट लिया जाता है। इसवेफ विपरीत यदि उच्च गुणवत्ता के काष्ठ की आवश्यकता होती है, तब अध्किाँश क्षेत्रा परिपक्व वृक्षों को प्रदान किया जाता है। चूँकि वुफछ क्षेत्रों में वांछित इमारती लकड़ी वाले वृक्ष चरम समुदाय वेफ सदस्य होते हैं, इसलिए वहाँ पारिस्थितिक समस्या को हल करने वेफ लिए सिर्पफ इतना ही करना होता है कि वृक्षों की कटाई वेफ बाद उनकी वृ(ि की सबसे अच्छी विध्यिाँ अपनाई जाएँ, जिससे चरम समुदाय की शीघ्र ही पुर्नस्थापना हो सके। इसवेफ विपरीत उन क्षेत्रो में जहाँ वांछित वृक्ष पारिस्थितिक अनुव्रफमण की प्रारंभिक अवस्था में होते हैं। वहाँ वन प्रबंध् वेफ अंतर्गत अनुव्रफमण को चरम समुदाय की अवस्था तक पहुँचने की विध्यिाँ अपनानी होती हैं। इसवेफ उदाहरण अनेक जंतु, अध्किाँश आखेट पखी तथा कई बहुत महत्वपूर्ण आखेट मीन है जोकि अपने समुदाय की प्रारंभिक अवस्थाओं में भली-भाँति पफलते-पूफलते हैं।
;पपद्ध वन सर्वेक्षण: जहाँ काष्ठ वेफ सतत् प्रदाय की संभावना होती है। वहाँ वन प्रबंध् वेफ प्रथम चरण  ही में वन का सर्वेक्षण अवश्य कर लिया जाता है। इसवेफ अंतर्गत किसी क्षेत्रा में उपलब्ध् लकड़ी का आयतन ज्ञात कर लिया जाता है। उस क्षेत्रा को पिफर अवस्थिति स्पेनीज, आयुवर्ग, वृक्षों की स्थिति तथा अन्य अभिलक्षणों के आधर पर ध्ीरे-ध्ीरे खंडो में विभक्त कर लिया जाता है। सर्वेक्षण पूर्ण होने पर लकड़ी काटने वेफ आवर्तन तंत्रा की एक प्रबंध् अभियोजना तैयार की जाती है, जिससे कि लकड़ी की एक नियमित पफसल मिलती रहे तथा काटे हुए वृक्षों की नियमित वृ(ि द्वारा पुर्नस्थापना हो सवेफ। चूँकि मशीनी उपकरणों को वृक्षों पहुँचाना होता है तथा कटाई वेफ बाद इन्हें वनांे से बाहर ले जाना होता है। अतः लकड़ी की वास्तविक कटाई शुरू करने वेफ बहुत पूर्व ही अनेक पहुँच मार्गों का निर्माण करना होता है। सड़कों वेफ निर्माण तथा स्थान निर्धरण में मृदारक्षण तथा अन्य प्रकार वेफ वनों की हानिप्रद समस्याओं से बचने की पूर्व सावधनियाँ बरती जानी चाहिएँ।
लकड़ी की कटाई की विध्यिाँ 
लकड़ी की कटाई की तीन आधरभूत प्रचलित विध्यिों का उपयोग काष्ठ-हेतु प्रबंध्ति वनों में किया जाता है।
1. निर्वृक्षीकरण
2. वरणात्मक कर्तन
3. परिरक्षित काष्ठ कर्तन
1. निर्वृक्षीकरण: इस प्रकार की कटाई विशेषकर उन वनों वेफ लिए उपयुक्त होती हैं जहाँ वृक्षों की अपेक्षावृफत एक समान आयु की तथा व्यावसायिक दृष्टि से उपयोगी स्पेशीज होती है। इसवेफ अंतर्गत एक खण्ड विशेष का पट्टी वेफ समस्त वृक्ष काट लिए जाते हैं लकड़ी की कटाई वेफ बाद बचे हुए मलबे तथा करकट को भी जलाकर हटा दिया जाता है। तथा भूमि को बीजांवुफरो की वृ(ि वेफ लिए उपयुक्त बनाकर ऐसे ही छोड़ दिया जाता है।
2. वरणात्मक काष्ठ कर्तन: इस प्रकार की कटाई विशेषकर मिश्रित आयुवर्ग वेफ तथा व्यावसायिक दृष्टि से असमान मूल्य वाले वृक्षों से युक्त वनों वेफ लिए उपयुक्त होती है। इसवेफ अंतर्गत वांछित स्पेशीज वेफ परिपक्व वृक्षों की पफसल काट ली जाती है। जबकि तरुण वृक्षों को परिपक्व अवस्था तथा वृ(ि करने वेफ लिए छोड़ दिया जाता है। जिन वृक्षों को काटना नहीं होता उन्हें कटाई वेफ समय नुकसान न हो इसका बहुत ध्यान रखा जाता है।
परिरक्षित काष्ठ कर्तन: यह, उपरोक्त कर्तन-विध्यिों वेफ मध्य की कर्तन विध् िहै। इसवेफ अंतर्गत निवृफष्ट गुणवत्ता या रूपाकार वाले वृक्षों को निकाल दिया जाता है। यह वस्तुतः एक प्रकार की विश्लन प्रव्रिफया है, जिसवेफ द्वारा वनों वेफ तल तक प्रकाश पहुँचने वेफ लिए खुला आकाश उपलब्ध् हो जाता है। सर्वोच्च गुणवत्ता वाले वृक्षों को बीज अलगन तथा नवावंवुफरी को आश्रय प्रदान करने वेफ लिए याचित छोड़ दिया जाता है। बीज पफसलों वेफ समुचित वितरण वेफ पश्चात वुफछ वृक्षांे को छोड़कर शेष वृक्षों में से समस्त का गुरुत्तर कर्तन किया जाता है। तृतीय चरण में जबकि बीजावंुफर भली-भाँति स्थापित हो चुकते हैं, शेष बचे हुए वृक्ष भी काट लिए जाते हैं। 
कटाई वेफ समय लकड़ी वेफ व्यर्थ नाश को भी नियंत्रित करना एक अच्छे काष्ठ प्रबंध् का ही अंग है। किसी वृक्ष की समस्त लकड़ी को व्यावसायिक कार्यों वेफ लिए उपयोग में नहीं लाई जा सकती है, पर बचे हुए भागों की अन्य कार्यों में उपयोगिता हो सकती है।