भीषण जल संकट



'देने वाला जब भी देता, देता छप्पर पफाड़ वे।' देने वाले ने तो छप्पर पफाड़ वेफ 'जल' प्रवृफति का अनोखा उपहार दिया हैµ
लेकिनµ 
'चारो ओर पानी ही पानी, पर पीने को बूँद नहीं'
मार्को पोलो जी का यह वाक्य कितना सार्थक बनता जा रहा है।
लगभग पांच सौ वर्ष पहले अकबर महान वेफ सुपफी जात भाई और उनवेफ नौ रत्नो में से एक सिपाहा सालार कवि अब्दुल रहिम खानखाना ने एक दोहा कहा था किµ
रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गए न उबरे, मोती, मानुस, चुन।।
अगर पानी नहीं रहा तो सब शून्य हंै, निरर्थक हैं। मोती, मानुस और चून तभी तक किमती है, जब तक वो पानीदार है। 'डग-डग पर रोटी और पग-पग पर नीर' यह लोकोक्तियाँ सुनते आया हूँ। लेकिन अब समय ऐसा आया है कि जहाँ सदा पानी भरपूर रहता था वह पूरी तरह से सूख गया है। ट्यूबवेल गहरे से गहरे खोदकर जमीन को जहाँ तक खाली किया जा सकता है करते जा रहे है, और गहरे कर लिये भी हंै। 
मानव को समझ तभी आती है जब उसवेफ सामने समस्या खड़ी हो जाती है। आने वाले समय में मैं यदि काल्पनिक 'पानी वेफ लिये यु( हो जायंेगे' यह सोचू तो... परंतु ऐसा काल्पनिक न हो और सभी जीव-जन्तु मनुष्य प्राणी को पानी मिलता रहे इसलिए सभी को पानी बचाओ आन्दोलन में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से सहभागी होकर जल की एक-एक बूंद बचाने का प्रयत्न कर अपना कर्तव्य निभाना चाहिए।
भूमिगत जल एवं जल चव्रफ
पृथ्वी पर पाये जाने वाले पानी पर 96 प्रतिशत समुद्र वेफ जल वेफ रूप में है। लेकिन समुद्र का पानी खारा होता है। इसलिए पीने योग्य नहीं होता, पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत पानी से ढका होने वेफ बावजूद यह बात ध्यान देने की है कि शहरों, कस्बो और गाँवों में पानी की कमी पैदा होती जा रही है और यह दुर्लभ होता जा रहा है। हालाँकि नदी, झील और तालाब वेफ रूप में ध्रती पर पानी वेफ अनेक ड्डोत है मगर ध्रती में पीने योग्य मीठा पानी वुफल उपलब्ध् पानी का सिर्पफ 3 प्रतिशत हैं एक और भी विचित्रा बात है कि वह तीन प्रतिशत मीठा पानी भी आसानी से उपलब्ध् नहीं है। इसमें से 2 प्रतिशत ग्लेशियरों और पहाड़ों पर जमी बर्पफ वेफ रूप में है। ध््रुवीय क्षेत्रा, ग्रीनलैंड और पहाड़ों पर करीब 11.263 घन किलोमीटर बर्पफ जमा है। मीठे पानी में से सिर्पफ 0.65 प्रतिशत द्रव वेफ रूप में है। द्रव रूप में उपलब्ध् मीठे पानी में से भी 99 प्रतिशत भूमिगत जल वेफ रूप में है बाकी मीठा पानी वायुमण्डल में या पेड़-पौधें, जीव-जन्तुओं और मनुष्यों वेफ शरीर में विद्यमान रहता है। 
अमेरीका वेफ भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग वेफ अनुमानों वेफ अनुसार दुनिया में 52.5 करोड़ घन मीटर पानी की जरूरत पड़ती है। ;एक घन किलोमीटर से आश्य एक ऐसे घर से है जिसकी प्रत्येक भुजा एक किलोमीटर वेफ बराबर है।द्ध यह कापफी बड़ी मात्रा है क्योंकि एक घन किलोमीटर पानी 2.42 गुणा 10 12 मीटर से भी अध्कि होता है।
वायुमंडल में किसी भी वक्त 4960 घर किलोमीटर पानी भाप वेफ रूप में विद्यमान रहता है। अगर वायुमंडल में मौजूद सारी भाप या नमी पृथ्वी पर पानी वेफ रूप में बदल जाए तो सारी ध्रती 2.54 सेंटीमीटर की पानी की परत से डूब जायेगी। एक अन्य अनुमान वेफ अनुसार पृथ्वी पर उपलब्ध् वुफल भू-जल में से 3218000 घन किलोमीटर मीठे पानी वेफ रूप में है। यह पृथ्वी की सतह से आमतौर पर 2.4 किलोमीटर तक की गहराई पर मिलता है। झीलो और नदियों का पानी भी इसी वेफ अंतर्गत आता हैं नदियो, ध्रती से घिरे समुद्रों और झीलों में 96,000 घन किलोमीटर मीठा पानी उपलब्ध् है। जिन दिनों बरसात नहीं हो रही होती, उन दिनों भी नदियों में पानी हफ्रतों तक बहता रहा है। यह 'जल चव्रफ' नाम की परिघटना वेफ कारण होता है। ध्रती पर पानी की प्रवाह एक स्थान से दूसरे स्थान तक और एक रूप से दूसरे रूप में होता रहता है। नदियों वेु पानी का एक हिस्सा भू-जल का होता है जो रिसकर नदी तल तक पहुँचता रहता है। वायुमंडल में विद्यमान वर्षा, वर्पफ आदि वेफ रूप में पृथ्वी पर गिरता है रिस-रिसकर भूमिगत जलाश्यों में भर जाता है। इन भूमिगत जलाश्यों का पानी रिसकर नदी तल तक लगातार पहुँचता रहता है। मनुष्यों को इस्तेमाल का पानी भूतलीय और भूमिगत दोनों प्रकार से ड्डोंतों से मिलता है। अमेरिका में पानी वेफ इस्तेमाल वेफ तुलनात्मक अध्ययन वेफ अनुसार भूतलीय जल ;नदियों, नाले, झील अािद का पानीद्ध की दैनिक खपत 1215 गुणा 10 9 लीटर है जबकि भूमिगत जल की 291 गुणा 10 9 लीटर दैनिक हैं उपरी तौर पर तेा ऐसा लगता है कि भूमिगत जल का महत्त्व भूतलीय जल से कम है, मगर सच्चाई यह है कि नदियों और झीलों को पानी से भरा रखने में भूमिगत जल की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। मरूस्थलों में जहाँ भूतलीय जल का नामोनिशान तक नहीं होता, लोग पानी की जरूरत भूमिगत जल से ही पूरी करते है। वर्षा, हिमपात, ओलावृष्टि आदि वेफ रूप में जब पानी ध्रती पर गिरता है तेा गुरूत्वाकर्षण शक्ति वेफ कारण यह मिट्टी से रिसता हुआ नीचे की ओर जाने लगता है। यह प्रव्रिफया तब तक चलती रहती है जब तक पानी जल से संतृप्त चट्टान तक नहीं पहुँच जाता। जल से संतुप्त चट्टान तक पहुँचने वेफ बाद यह रिस-रिसकर नदियों, झीलों और समुद्र में पहुँच जाता है। पृथ्वी में चट्टानों की वुफछ परते से वुफछ छिद्रयुक्त होती है। इन चट्टानों से पानी आसानी से नीचे की ओर रिसता रहता है। हालाँकि गुरूवाकर्षण की वजह से पानी नीचे की ओर रिसता है लेकिन यह सीध पृथ्वी वेफ वेंफद्र तक नहीं पहुँचता। ध्रती वेफ कापफी अंदर ग्रेनाइट जैसे किसी सध्न पदार्थ की परतें होती है जिससे होकर पानी रिस नहीं पाता। ये परतंे छिद्रयुक्त चट्टानों वेफ नीचे होती है, इस कारण ये नीचे की ओर पानी वेफ रिसाव को रोक देती है। जब पानी नीचे की ओर नहीं जा पाता तो यह छिद्रयुक्त परतांे में जमा होने लगता है और क्षैतिज दिशा में इसका प्रवाह शुरू हो जाता है। बरसात को छोड़कर अन्य मौसम में नदियों और झीलों में पानी इसी तरह से आता है। ध्रती में पानी का क्षेतिज बहाव इसी प्रकार का है। यह प्रव्रिफया पृथ्वी पर लगातार चलती रहती है और हमारे जल-चव्रफ का महत्वपूर्ण अंग है। अगर जल-चव्रफ नहीं होता तो पृथ्वी पर बहुत असंतुलन उत्पन्न हो जाता और सारी चीजें बासी और पुरानी हो जाती जल-चव्रफ से ही हमें पीने का ताजा पानी मिलता है। 
जल-चव्रफ से ही हमें तरोताजा पानी मिलता है। इसलिए हमें पानी वेफ महत्व को समझते हुए जमीन वेफ पानी का स्तर वैफसे उफपर उठाया जाए उसे घटने नहीं दिया जाये। उसवेफ लिए बारिश वेफ पानी और नदी-नालों वेफ पानी वेफ साथ हमें वुफछ करना है। उसे बेकार में बहने नहीं दिया जाए। जंगल पूर्ण रूप से उजाड़ हो चुवेफ हैं, थोड़ी सी बारिश वेफ बाद बाढ़ का आ जाना और निकल जाना यह आम बात हो गयी है। आकाश से हमें मुफ्रत में पानी मिलता है उसे बाँध जाए इसी प्रव्रिफया से पानी जमीन में रिसेगा और भूजल का स्तर उँफचा उठेगा। हमे रोज प्रतिदिन अखबार, टी.वी. अन्य प्रसार माध्यम, प्रर्यावरण प्रेमी, भूजलविज्ञानी चिल्ला-चिल्लाकर पानी को बचाओ हमें आने वाले समय वेफ बारे में चेतावनी दे रहे है।
'बूंद-बूंद बचाकर बनेगा सागर
तब ना देखना पड़ेगा उपर।।'