भारतवर्ष में इससे पहले लोगों की आयु 80 वर्ष या इससे भी अधिक होती थी, बीमारियाँ बहुत कम होने के कारण लोगों की मृत्यु दर में बहुत कमी थी। परंतु आज जहाँ विकास की होड़ सी मची हुई है, लोगों की औसत आयु भी कम होने लगी है। देखने में तो यह भी आया है कि युवावस्था (25-30 वर्ष) में ही अकाल मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है, कि हम लोग अर्थात् चिकित्सा पद्यतियाँ बीमारियोें की दवाइयों, उनकी चिकित्सा पर तो अधिक ध्यान दे रही हैं, परंतु उनके कारकों पर शायद उतना ध्यान नहीं दिया जा रहा, जितना उन्हें देना चाहिए। और आज इसके गंभीर परिणाम हमारे सामने हैं। कोविड-19 का उपचार हर डॉक्टर, चिकित्सक यहाँ तक कि घर-घर में किया जा रहा है, परंतु इस बीमारी के कारकों को जानने में अभी तक भ्रम बना हुआ है।
इंटरनेट की दुनिया में सबसे तेज 4G नेटवर्क के बाद अब 5G यानी पांचवीं पीढ़ी के नेटवर्क के प्रसार की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। दुनिया भर में इंटरनेट की बढ़ती मांग के कारण 4G नेटवर्क अब ओवरलोडिंग का शिकार हो रहा है। इससे निपटने के लिए 5G को लाया जा रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि 5G के आने से हमारे रहन-सहन का तौर-तरीकों में नाटकीय बदलाव देऽने को मिल सकता है।
इस नेटवर्क का प्रसार होने के बाद रेडियोफ्रीक्वेंसी (आरएफ) विकिरण के संपर्क में आने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभावों के बारे में चिंता भी जताई जा रही है। 5G नेटवर्क के शुरू होने पर जाहिर सी बात है मोबाइल टावरों की संख्या बढ़ेगी और आरएफ सिग्नल की ताकत बहुत ज्यादा होती है। ऐसे में विकिरण से स्वास्थ्य खराब होने की आशंका भी है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक नियामक प्राधिकरणों द्वारा निर्धारित सुरक्षा के मानकों का पालन होता रहेगा तब तक आरएफ से डरने की जरूरत नहीं है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी आरएफ सिग्नलों के संपर्क में आने की आशंकाओं को कम किया है। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, आरएफ के परिक्षेत्र में आने से शरीर का ताप बढ़ता है और तापमान में मामूली वृद्धि लोगों के स्वास्थ्य को बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं करती है। विशेषज्ञों के मुताबिक, सूर्य द्वारा उत्सर्जित पराबैंगनी किरणें (यूवी) प्रकृति में आयनीकरण का कारण बन सकती हैं। इससे हमारी कोशिकाओं को काफी नुकसान पहुंच सकता है।
दरअसल विकिरण का सवाल इसीलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि 5G की गति 4G के मुकाबले कई गुना ज्यादा होगी और इसके लिए तीव्र विकिरण की भी आवश्यकता होती है। लेकिन अभी तक किसी भी वैश्विक अध्ययन में इस विकिरण से मानव शरीर पर नकारात्मक प्रभावों के तथ्य सामने नहीं आए हैं, जिसके आधार पर माना जा रहा है कि 5G लोगों के शरीर प्रभावित नहीं करेगा।
माना जाता है कि टावरों से निकलने वाले रेडिएशन पर्यावरण और वन्य जीव जंतुओं के लिए ऽतरा साबित हो रहा है। पर्यावरण के साथ ही मानव के लिए भी यह हानिकारक हो सकती है क्योंकि वेव टावर लोगों के घरों के काफी पास लग चुके हैं। पिछले दिनों कई मीडिया रिपोर्टों में यह दावा किया गया था कि 5G सेलफोन से कैंसर पीड़ितों की संख्या में वृद्धि कर सकता है। इसके अलावा कुछ शोध पत्रें में यह भी कहा जा रहा है कि 5G नेटवर्क के लिए लगाई जा रही millimeter-wave टावर में होने वाला हाई फ्रिकवेंसी रेडिएशन कैंसर के साथ-साथ इनफर्टिलिटी डीएनए और तंत्रिका तंत्र से जुड़े असामान्यता का कारण बन सकती है। भले ही इन सभी आशंकाओं को वैज्ञानिकों ने सिरे से ख़ारिज कर दिया है।
मोबाइल फोन के बिना अब हम जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर पाते। आदत ऐसी बन गई है कि जब कॉल नहीं होता, तो भी हमें लगता है कि घंटी बज रही है। यह घंटी दरअसल खतरे की घंटी हो सकती है। मोबाइल फोन और मोबाइल टावर से निकलने वाला रेडिएशन सेहत के लिए खतरा भी साबित हो सकता है। लेकिन कुछ सावधानियां बरती जाएं, तो मोबाइल रेडिएशन से होने वाले खतरों से काफी हद तक बचा जा सकता है।
मोबाइल रेडिएशन पर कई रिसर्च पेपर तैयार कर चुके आईआईटी बॉम्बे में इलेक्ट्रिकल इंजिनियर प्रो. गिरीश कुमार का कहना है कि मोबाइल रेडिएशन से तमाम दिक्कतें हो सकती हैं, जिनमें प्रमुख हैं सिरदर्द, सिर में झनझनाहट, लगातार थकान महसूस करना, चक्कर आना, डिप्रेशन, नींद न आना, आँखों में ड्राइनेस, काम में ध्यान न लगना, कानों का बजना, सुनने में कमी, याददाश्त में कमी, पाचन में गड़बड़ी, अनियमित धड़कन, जोड़ों में दर्द आदि।
स्टडी कहती है कि मोबाइल रेडिएशन से लंबे समय के बाद प्रजनन क्षमता में कमी, कैंसर, ब्रेन टड्ढूमर और मिस-कैरेज की आशंका भी हो सकती है। दरअसल, हमारे शरीर में 70 फीसदी पानी है। दिमाग में भी 90 फीसदी तक पानी होता है। यह पानी धीरे-धीरे बॉडी रेडिएशन को अब्जॉर्ब करता है और आगे जाकर सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होता है। यहां तक कि बीते साल आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक मोबाइल से कैंसर तक होने की आशंका हो सकती है। इंटरफोन स्टडी में कहा गया कि हर दिन आधे घंटे या उससे ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल करने पर 8-10 साल में ब्रेन टड्ढूमर की आशंका 200-400 फीसदी बढ़ जाती है।
माइक्रोवेव रेडिएशन उन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्स के कारण होता है, जिनकी फ्रीक्वेंसी 1000 से 3000 मेगाहर्ट्ज होती है। माइक्रोवेव अवन, एसी, वायरलेस कंप्यूटर, कॉर्डलेस फोन और दूसरे वायरलेस डिवाइस भी रेडिएशन पैदा करते हैं। लेकिन लगातार बढ़ते इस्तेमाल, शरीर से नजदीकी और बढ़ती संख्या की वजह से मोबाइल रेडिएशन सबसे खतरनाक साबित हो सकता है। मोबाइल रेडिएशन दो तरह से होता है, मोबाइल टावर और मोबाइल फोन से।
मैक्स हेल्थकेयर में कंसल्टेंट न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पुनीत अग्रवाल के मुताबिक मोबाइल रेडिएशन सभी के लिए नुकसानदेह है लेकिन बच्चे, महिलाएं, बुजुर्गों और मरीजों को इससे ज्यादा नुकसान हो सकता है। अमेरिका के फूड एंड ड्रग्स ऐडमिनिस्ट्रेशन का कहना है कि बच्चों और किशोरों को मोबाइल पर ज्यादा वक्त नहीं बिताना चाहिए और स्पीकर फोन या हैंडसेट का इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि सिर और मोबाइल के बीच दूरी बनी रहे। बच्चों और प्रेगनेंट महिलाओं को भी मोबाइल फोन के ज्यादा यूज से बचना चाहिए।
अतः निष्कर्ष यही निकलता है कि विकास के साथ साथ हमें यह भी देखना होगा कि इन विकास स्रोतों का बुरा प्रभाव कहीं मानव जीवन पर तो नहीं पड़ रहा।
- ताकि धरती रहे सुरक्षित
-मुकेश नादान
(निदेशक: प्रकृति फाउंडेशन)
मो.: 9837292148