कचरा प्रबंध्न


ई-कचरे वेफ ढेर से शहरों का दम घुट रहा है। सुविधभोगी जिंदगी अब इलेक्ट्राॅनिक कबाड़ से घिर गई है। मेरठ जैसे-टियर दो एवं तीन शहरों में भी बेंगलुरू और मुम्बई की तरह जहरीला कबाड़ जमा हो चुका है। एसोचैम की ताजी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि एनसीआर में मेरठ में सर्वाध्कि तेजी से ई-कचरा जमा हो रहा है। मोबाइल, टीवी, कम्प्यूटर, लैपटाॅप, बैटरी, एसी एवं प्रिफज सरीखे उत्पादों की बाढ़ से कचरा मौत का कारण बन रहा है। ई-कचरा जलाने से उत्पन्न होने वाले जहरीले रसायन वेंफसर तक बना सकते हैं सर्वे वेफ मुताबिक, मेरठ की स्थिति एनसीआर में सबसे भयावह है। पाॅलीथीन से जहाँ नालियाँ एवं सड़वेफ जाम है, वहीं अस्पतालों का वैंफसर बायोमेडिकल कचरे से भरा है। 16 लाख की आबादी वाले शहर एवं 35 लाख आबादी वाले जिले में रोजाना सैकड़ों टन ई-कचरा निकल रहा है। टीवी, लैपटाॅप, प्रिफज, वाशिंग मशीन, मोबाइल, माइव्रफोचिप, रेडियो, ट्राॅजिस्टर, बैटरी एवं अन्य कबाड़ जीवन वेफ लिए खतरा बन चुके हैं।  इनमें से तमाम रसायनों में भारी तत्व पाए जाते हैं जो वैंफसरकारक भी हैं। इन्हें जलाने पर खतरनाक गैसों का उत्सर्जन होता है। अगर  इस कबाड़ को जमीन में गाड़ दिया जाए तो भूजल तक विषाक्त हो सकता है। यह जरूर है कि कबाड़ियों को कौड़ियों वेफ भाव इसे बेच दिया जाता है। जिनवेफ पास निस्तारण का कोई सुरक्षित पफार्मूल नहीं होता। एसोचैम की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि कचरे में कम्प्यूटर की 68 पफीसदी, टैलीकाॅम उपकरणों की 12, इलेक्ट्राॅनिक उपकरणों की आठ, चिकित्स उपकरणों की सात पफीसदी हिस्सेदारी है। इस तरह वेफ ई-कचरे से अभी तक दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू जैसे बड़े महानगर प्रभावित होते थे, लेकिन अब ई-कचरे का प्रभाव मेरठ, गाजियाबाद, आगरा मथुर, बनारस व इलाहाबाद जैसे शहरों में भी पड़ने लगा है।
यूज एंड थ्रो से खतरा बढ़ा  
इलेक्ट्राॅनिक्स उत्पादों को लेकर यूज एंड थ्रो जैसी सोच से स्थिति और भयावह हो गई है। रोजान सैकड़ों वुंफतल नया कबाड़ बन रहा है। मेरठ वेफ तमाम हिस्सों में कबाड़ को जलाकर उसमें से धतुओं को निकालने का खतरनाक काम किया जाता है। रिसाइकलिंग की तकनीक बड़े शहरों में भी न होने से इसका विषाक्त प्रभाव आसपास में भी पड़ता है। रसायनिक चिकित्सक कहते हैं कि ई-कचरा आने वाले एक दशक को सबसे बड़ा खतरा है।
12 लाख टन ई-कचरा
डिपार्टमेंट आॅपफ एनवायरमेंट पूफड एंड रूरल अपेफयर्स वेफ आँकड़ों पर गौर करें तो अपने यहाँ ई-कचरे का बोझ आयातित है। हर साल भारत में 12 टन ई-कचरा आ रहा है। यूएसए अपना 80 पफीसदी ई कचर चीन, इंडोनेशिया व पाक वेफ अलावा भारत में भेज रहा है।
वूफड़े से मुक्ति का रास्ता
साप्ताहिक पत्रिका स्पेक्टेटर वेफ अनुसार, इंग्लैंड की सड़कों से तीन करोड़ टन वूफड़ा प्रतिवर्ष उठाया जाता है। और सरकार द्वारा चलाए जाने वाले सपफाई अभियानों वेफ बावजूद यह बढ़ता जा रहा है। अप्रैल में महारानी एलिजाबेथ की 90वर्षगाँठ वेफ अवसर पर पूरे देश में सपफाई अभियान चलाया गया था, पर इससे भी काई ज्यादा सपफाई नहीं हो सकी।
लोगों द्वारा पैफलाए जा रहे वूफडे को वैफसे रोका जाए, यह समूची दुनिया की समस्या है। इसका एक तरीका सिंगापुर में निकाला गया है। वहाँ वूफड़े पैफलाने वालों वेफ लिए भारी जुर्माना व जेल का प्रावधन है। च्यूंगगम जैसे कूड़े का कारण बनने वाली चीजें तो वहाँ पूरी तरह प्रतिबंध्ति हैं। वहाँ पहली बार सड़क पर सिगरेट वेफ टुकड़े, चिप्स वेफ पैवेफट, रैपर आदि छोटी मोटी चीजें पेंफकने पर 300 डाॅलर का जुर्माना लगता है, जो बाद में और भी बढ़ जाता है। सड़क पर सापफ शब्दों में लिखा रहता है, 'वूफड़ा पेंफकने की सजा'। यहाँ भी यदि ऐसा वुफछ किया जा सवेफ, तो शायद ध्ीरे-ध्ीरे लोगों में वूफड़ा डालने की आदत छूटेगी, जैसी कि कार चलाते समय सीट बैल्ट बोँध्ने की आदत सुध्री है। लेकिन हर जगह ऐसी सख्ती सपफल होगी, इसमें शक जरूर है।
वूफड़े को लेकर हर देश की समस्या अलग है। कई जगहों पर घर वेफ बाहर वूफड़ेदान रखना ही समस्या का कारण बन जाता है। कबाड़ी और स्मैक की लत वाले लोग वूफड़ेदान उठाकर ले जाते हैं। वुफछ जगहों पर अन्य उपाय अपनाए गए हैं। मसलन, लोग अपना वूफड़ा घरों में ही रखते हैं और स्थानीय निकाय की गाड़ी उनसे वूफड़ा ले जाती है। इस सेवा वेफ लिए स्थानीय निकाय को उन्हें बाकायदा  भुगतान करना होता है और वुफछ जगह यह सेवा  निजी क्षेत्रों या एनजीओ वगैरह को भी सौंेप दी गई है। स्थानीय स्तर पर ऐसे कई समाधन सोचे और निकाले जा रहे हैं। लेकिन पिफर भी हमारे शहरों-कस्बों वगैरह को वूफड़े से मुक्ति नहीं मिल रही। 
पाॅलीथिन: सेहत वेफ लिए हानिकारक
बच सवेफगी ओजोन की परत: वैज्ञानिकों वेफ मुताबिक पाॅलीथिन से सर्वाध्कि नुकसान ओजोन की परत को पहुँच रहा है। अक्सर वूफड़े वेफ साथ पाॅलीथिन को जला दिया जाता है। प्रदूषण नियंत्राण बोर्ड वेफ क्षेत्राीय अध्किारी डीबी अवस्थी का कहना है कि पाॅलीथिन वेफ जलने से उसमें निकलने वाला क्लोवेन्जो कम्पाउंड आसमान में पहुँचकर ओजोन की परत को नुकसान पहुँचाता है। सूर्य से निकलने वाले पराबैंगनी किरणों वेफ नुकसान को कम करने का काम और ओजोन की परत ही करती है। ओजोन की परत लगातार पतली होने से पराबंैगनी किरणें सीध्े हमारे शरीर पर पड़ती है। ये किरणंे हमारी त्वचा को प्रभावित करती है। स्किन वैंफसर जैसी बीमारी की भी संभावना रहती है। इसवेफ अलावा जेनेटिक में भी बदलाव होता है।
 लकड़ी जलाने से पहले अक्सर लोग पाॅलीथिन को नीचे रखकर पहले उसी को जलाते हैं पेट्रो पदार्थ होने वेफ कारण पाॅलीथिन आग जल्दी पकड़ लेती है। पाॅलीथिन वेफ जलने से उससे निकलने वाला ध्ुआँ पेफपफड़ों वेफ रस्ते खून की नालियों में पहुँच जाता है। जो अंततः न्यूरो सिस्टम में पहुँचकर न्यूरो से संबंध्ति तमाम बीमारियां पैदा कर सकता है। किसी एक जगह जल रही पाॅलीथिन वेफ आसपास वेफ तमाम लोग प्रभावित होते हैं। इसवेफ अलावा पाॅलीथिन में गर्म पदार्थ रखने पर उसवेफ तत्व खाद्य पदार्थ में मिलकर हमारे शरीर में पहुँच जाते हैं जिससे वैंफसर की बीमारी हो सकती है।
पाॅलीथिन कभी नष्ट नहीं होती। जमीन वेफ नीचे पहुँचकर वह भू-जल को भी बहुत नुकसान पहुँचा रही है। इसवेफ अलावा नाले और नालियों को चैक करने में इसका बहुत बड़ा योगदान है। जिससे अब प्रदेश सरकार द्वारा पाॅलीथिन पर पूर्ण प्रतिबंध् लगाने वेफ बाद बड़ी राहत मिलेगी। मेरठ में पाॅलीथिन बारिश वेफ दिनों में बड़ी समस्या बनती है। इससे निजात मिलने की उम्मीद जताई जा रही है।
पाॅलीथिन पर प्रतिबंध् लगने से लोग विकल्प की तलाश करने लगे हैं। बाजार में आदेश लागू होने वेफ बाद पाॅलीथिन गायब होने लगी। इसवेफ विकल्प तलाशते हुए लोग और दुकानदार उनका प्रयोग करने लगे। कपड़े अथवा जूस वेफ बैग की इस्तेमाल अब बढ़ने लगा। प्रावृफतिक संसाध्नों से बैग बनाने वाले को रोजगार वेफ अवसर मिलेंगे। माना जा रहा है कि यह आदेश वुुफटीर उद्योगों की संजीवनी बनेगा। खास तौर पर वुफल्हड़, जूट बैग और कागज वेफ लिपफापेफ बनानेे वालों को राहत मिलेगी।
समुद्री पक्षियों वेफ पेट में प्लास्टिक
90 प्रतिशत समुदं्री पक्षी किसी न किसी तरह से प्लास्टिक खा रहे हैं। और यह प्लास्टिक उनवेफ पेट में ही रह जाती है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने यह खुलासा किया है और चेतावनी दी है कि बीते वुफछ सालों मंे समुद्रों में पेंफके जा रहे प्लास्टिक से समुद्री जीवों की जान खतरे मे आ गई है। यह शोध् पीएनएएस जर्नल में छापा गया है। शोध्कर्ताओं वेफ मुताबिक आॅस्टेªलिया और न्यूजीलैंड वेफ बीच तस्मानिया सागर सर्वाध्कि प्रभावित इलाका है।
शोध्कर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर इसी तरह कचरा समुद्रों में पेंफका जाएगा तो स्थिति और भयावह हो जाएगी। शोध्कर्ता एरिक वेन सेबाइल वेफ मुताबिक 2050 तक स्थिति यह हो जाएगी कि 99 प्रतिशत समुद्री पक्षियों वेफ पेट में प्लास्टिक मिलने की संभावना होगी।
शोध्कर्ताओं में से एक व्रिफस क्लिकाॅक्स वेफ मुताबिक 1960 वेफ दशक से लेकर अब तक समुद्री पक्षियों वेफ पेट में पाए जाने वाले प्लास्टिक की मात्रा बढ़ती जा रही है। साल 1960 में पाँच पफीसदी से भी कम समुद्री पक्षियों वेफ आहार में प्लास्टिक पाया गया था। 2010 तक आते-आते यह आँकड़ा बढ़कर 80 पफीसदी तक पहुँच गया।
शोध् वेफ मुताबिक  यह प्लास्टिक सर्वाध्कि प्लास्टिक वेफ थैलों, बोतल वेफ ढक्कनों और सिंथेटिक कपड़ों से निकले प्लास्टिक वेफ धगे, शहरी इलाकों से होकर नदियों, सीवर और शहरी कचरे से समुद्र में बहकर आती है। समुद्री पक्षी प्लास्टिक की इन चमकदार वस्तुओं को गलती से खाने वाली चीजें समझकर निगल लेते हैं। इससे उनमें आंत से संबंध्ति बीमारी, वजन का घटना जैसी समस्याएँ देखने को मिलती है। कई बार उनकी मौत भी हो जाती है।